________________
४८६ ]
व्रत कथा कोष
धान्य के लाह्या का पुञ्ज रखकर तीन सुवर्णपुष्प रखे, महाअर्घ्य चढ़ावे, चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवे, इस प्रकार इस व्रत की विधि है।
कथा इस जम्बद्वीप के भरत क्षेत्र में अवंति नाम का देश है, उस देश में कनकपूर नाम का गांव है, उस गांव में एक पृथ्वीदेवी सहित अयंधर नाम का राजा राज्य करता था, उस नगर में एक धनपाल नाम का वैश्य रहता था, उसकी धनश्री नाम की सेठानी थी, सेठ-सेठानी महान दरिद्र थे।
एक बार श्रुतसागर नाम के महा मुनिराज नगर में आहार के लिए आये । मुनिराज को देख कर धनपाल वैश्य ने मुनिराज का पडगाहन किया, यथाविधि नवधा भक्तिपूर्वक निरंतराय आहार कराया, मुनिराज को घर के बाहर बैठाया, धर्मोपदेश सुनकर धनश्री हाथ जोड़कर कहने लगी कि हे गुरुदेव ! हम को दारिद्र ने वयों घेर रखा है, क्या कारण है ? उसके वचन सुनकर मुनिन्द्र कहने लगे।
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में काश्मीर नाम का बहुत बड़ा देश है, उस देश में हस्तिनापुर नाम का नगर है, उस नगर में वृषभांक नाम का राजा अपनी वृषमति रानी के साथ में सुख से राज्य करता था, उसकी नगरी में एक सोमशर्मा नाम का पुरोहित अपनी सोमश्री पुरोहितानी के साथ रहता था, उसको एक सुवर्णमाला नाम की कन्या थी।
एक बार उस नगर में देशभूषण नामक महामुनि पाहार के लिये आये । कर्मयोग से मुनिराज को देखकर मुनिराज की निन्दा की, ग्लानि की, इसी पाप से तुम्हारे घर में दरिद्रता ने बसेरा किया है। ऐसे मुनिराज के वचन सुनकर उसको बहुत बुरा लगा और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे, कि हे देव ! अब हमारी यह दरिद्रता नष्ट हो ऐसा कोई एक उपाय कहो ।
तब मुनिराज दया करके कहने लगे कि हे देवी अब तुम त्रिमुष्टि लाजा व्रत स्वीकार करो, ऐसा कहकर मुनिराज ने व्रत की विधि बतलाई, तब उसने इस व्रत को स्वीकार किया, और विधिपूर्वक व्रत का पालन किया, व्रत के प्रभाव से उस