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व्रत कथा कोष
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करके एक पारणा, फिर तीन उपवास करके एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, फिर तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, २६ उपवास व सात पार करना चाहिए । यह व्रत ३६ दिन में पूरा होता है । इस व्रत में मास तिथि वगैरह निश्चित नहीं है। वर्ष में कभी भी कर सकते हैं । जब से प्रारम्भ करो तब से क्रम से पूरा करना । उद्यापन करना चाहिए ।
- गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय
इसकी और एक विधि जैन व्रत विधान में दी है ।
प्रथम ५ उपवास एक पाररणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, फिर पांच उपवास एक पारणा, इस प्रकार २६ उपवास ७ पारणा करना चाहिए ।
इसी प्रकार एक और विधि - पहले क्रम से पांच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा और पांच उपवास एक पाररणा, ऐसे २६ उपवास सात पार करके ३३ दिन में व्रत पूरा करना होता है ।
अथ मिथ्यात्वगुणस्थान व्रत कथा
व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ कृ० १३ के दिन एकाशन करे, १४ के दिन उपवास करे, पूजा वगैरह पहले के समान करे, एक दम्पति को भोजन करावे, वस्त्र आदि दान करे ।
कथा
पहले सरापुर नगरी में शूरसेन राजा सुकांत अपनी महारानी के साथ रहता था । उसका पुत्र रूपसुन्दर, उसकी स्त्री रूपसुन्दरी और सुकौशल प्रधान, उसकी स्त्री सुमति, सुरकीर्ति पुरोहित उसकी स्त्री सुरत्नमालिनी सुघोषदत्त उसकी स्त्री