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________________ ४७४ ] व्रत कथा कोष उसके भाग्य से एक दिन एक चारण ऋद्धिधारी मुनि विहार करते हुये वहां आये । सेठ ने बहुत ही आदर पूर्वक उनको पाहार दिया । मुनि महाराज आहार करके जंगल में जाने को निकले । सेठ भी मुनिमहाराज के पीछे पीछे जंगल में गया। गुरु-मुख से धर्मोपदेश सुनकर उसने पूछा भगवान मेरे दरिद्रता का क्या कारण हैं ? पूर्व भव में मैंने क्या पाप किया है जिसे मुझे उसका यह फल मिला ? मुनिमहाराज ने उत्तर दिया "सुन पूर्वी कौशल देश में अयोध्या नगरी में देवदत्त श्रेष्ठी अपनी औरत देवदत्ता के साथ रहता था, वह अत्यन्त धनवान था पर उसकी देवदत्ता कंजूस थी । उसको कभी भूलकर भी दान देने की भावना नहीं होती थी। इतना ही नहीं औरों का धन अपहरण करने की उसकी इच्छा होती थी। ___कई दिन ऐसे ही बीते । एक दिन एक ब्रह्मचारी माहार के लिये उसके घर आया । उसकी प्रकृति बहुत ही क्षीण हो गयी थी, पर देवदत्ता को उस पर दया नहीं आयी उल्टे उसने अपशब्द बोलकर भेज दिया । श्रेष्ठी ने भी उसका अनुमोदन किया । उस पाप से वे आगे गरीब हो गये। वहां उसे पेट भर खाना भी नहीं मिलता था । पार्तध्यान से मरकर वे ब्राह्मण के घर में भैंस, भैंसा हुए । एक बार वे पानी पीने के लिए सरोवर के पास गये । वहाँ कीचड़ में फंसकर वहीं उनका मरण हो गया। उस समय एक दयालु सेठ ने मरते समय णमोकार मन्त्र सुनाया था जिसके प्रभाव से तुम दोनों मनुष्य हुए। पूर्व संचित पाप कर्म अभी खत्म नहीं हुआ है। इसलिये इससे मुक्त होने की इच्छा हो तो मेघमाला व्रत का पाचरण करो और धर्म का अध्ययन करो। तब उन दोनों ने मेघमाला व्रत किया । उसका विधिवत पालन किया। आगे उनका दारिद्र दूर हो गया । सुख से मरकर वे देव हुये । वहां से च्युत होकर वे पोदनपुर में विजय भद्रराजा क विजयाकति रानी हुये। मुरजमध्य व्रत इस व्रत में प्रथम ५ उपवास करके पारणा करना, फिर क्रम से ४ उपवास
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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