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व्रत कथा कोष
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व्रत ३० दिन में पूरा होता है । एक वर्ष में वह पूर्ण होता है । यथाशक्ति उद्यापन करना उद्यापन नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिये । इस व्रत में तिथि मास का कोई नियम नहीं है । कभी भो प्रारम्भ कर सकते हैं पर शुरू करने के बाद क्रम से ही करना चाहिए।
(गोविंदकृत व्रत निर्णय) हरिवंश पुराण में इसकी और एक विधि दी है।
द्वयाद्यास्ते यत्र पंचान्ता द्वयान्ताश्च चतुरादयः विधि दङ्ग मध्योऽयं मृदङ्गकृतिरिष्यते ।
क्रम से दो उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, फिर चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, इस प्रकार २३ उपवास व पारणा करना।
और एक विधि किशनसिंह कृत क्रियाकोष में दी है। उसको गृहत् मृदंगवत कहा है । यह व्रत ६८ दिन में पूरा होता है। इसमें ८१ उपवास १७ पारणे आते हैं । इसका क्रम पहला एक उपवास एक पारणा दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, पाठ उपवास एक पारणा, नव उपवास एक पारणा, पाठ उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारगा, पांच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा । इस क्रम से इस व्रत को करना चाहिए । क्रम से यह व्रत करना चाहिये बीच में क्रम टूटना नहीं चाहिये । व्रतों के दिनों में णमोकार मन्त्र का जाप त्रिकाल करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए, उद्यापन नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिए।
मौन व्रत श्रावण महिने की वदि पक्ष में प्रतिपदा को मौन पालकर प्रोषधोपवास करना। बाद में वदि अष्टमी और वदि चतुर्दशी को प्रोषधोपवास करना । फिर से