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व्रत कथा कोष
___ इस व्रत का प्रारम्भ श्रावण शुदि प्रतिपदा से करना बाद में लगातार २२० दिन व्रत करना । बीच में छोड़ना नहीं चाहिए । यह व्रत सात वर्ष करना ।
___ इस व्रत में जिस-जिस मेरू सम्बन्धी मन्त्र का जाप करना पहिले मेरु के व्रत का मन्त्र ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरू सम्बन्धी षोडष जिनालयेभ्यो नमः इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना, दूसरे मेरु का जाप "ॐ ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धी षोडजिनालयेभ्यो नमः" इसका जाप करना, तीसरे मेरु सम्बन्धी "ॐ ह्रीं प्रचलमेरु सम्बन्धी षोडजिनालयेभ्यो नमः" और चौथे मेरु सम्बन्धी - ॐ ह्रीं मंदरमेरु सम्बन्धी षोडष. जिनालयेभ्यो नमः इस मन्त्र का जाप करना।
पारणे के दिन एक ही अन्न लेना चाहिए । फल में संतरा आम वगैरह फल लेना । रात को जागरण करना पंचमेरु की पूजा के साथ ही त्रिकाल चौबीस विद्यमान विंशतितीर्थंकर और पंचपरमेष्ठी पूजा करना । शीलव्रत का पालन करना ।
इस व्रत का फल लौकिक व पारलौकिक अभ्युदय की प्राप्ति है । इसलिये स्वर्गसुख भोगोपभोग कर सामग्री भोगकर विदेह में जन्म लिया, बाद में पांच चार भव में मुक्ति मिलेगी।
इस व्रत में और एक विधि गोविंद कवि ने अपने व्रत निर्णय में दी है।
प्रथम दो उपवास प्रोषध से करे, बाद में चार उपवास करके एकान्तर करे । उसके बाद दो उपवास करके एकाशन करे उसके बाद क्रम से २१ बेले करना, उसके बाद लाइन से चार उपवास करके एकाशन करना, उसके बाद फिर २१ बेला दो उपवास व एक एकाशन करना । इस प्रकार यह व्रत १४४ दिन में पूरा करना, पूर्ण होने पर उद्यापन करना नहीं तो दूना करना । प्रारम्भ करने के बाद क्रम से पूर्ण किया हो तो उद्यापन करे।
मृदंगमध्य व्रत प्रथम दो उपवास करके पारणा करना फिर तीन प्रोषधोपवास करके एक पारणा के साथ आहार ले। फिर चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा (धारणे के साथ) चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा इस प्रकार २३ उपवास करना, इसमें सात पारणे आते हैं।