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________________ व्रत कथा कोष इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, ब्रह्मचर्य का पालन करे उस दिन उपवास करे, दूसरे दिन पूजा दान करके स्वयं पारणा करे, इस प्रकार चार महिने प्रत्येक अष्टमी व चतुर्दशी को व्रत पूजा करके अन्त में कार्तिक अष्टान्हिका में व्रत का उद्यापन करे, उस समय अभिनन्दन तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे, चतुविध संघ को दान देवे, चार दम्पति वर्ग को भोजनादिक देकर वस्त्रादिक देवे । कथा राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढ़ े । ४६७ मेरू व्रत मेरु पांच हैं । सुदर्शन, विजय, अचल, मेरुवार चार वन है । उनके नाम :- भद्रसाल, वन में चार-चार चैत्यालय हैं । ऐसे पांच मेरु के व्रत मेरु व्रत है । मंदर और विद्युन्माली । प्रत्येक नंदन, सौमनस और पांडुक । प्रत्येक अस्सी चैत्यालय हैं । उस सम्बन्धी प्रथम सुदर्शन मेरु के भद्रसाल वन में चार मन्दिर के लिये एक उपवास एक पाररणा ऐसे चार उपवास चार पारणा करके एक बेला करके पारणा करना । उसके बाद नंदन वन के चैत्यालय सम्बन्धी एक उपवास एक पाररणा ऐसे चार पारणा उपवास चार पारणा करके एक बेला करना उसके बाद पारणा करना उसके बाद सोमनस व चौथा पांडुकवन में चैत्यालय संम्बन्धी ऊपर के अनुसार चार-चार उपवास चार-चार पारणा करना व बेला व पारणा करना चाहिए । ऐसे सब मिलकर १६ उपवास १६ पारणा चार बेला चार पारणा करना इस प्रकार ४४ दिन में प्रथम मेरु सम्बन्धी उपवास पूर्ण होते हैं । इस प्रकार विजय मेरु, श्रचलमेरु, मन्दरमेरु और विद्युन्माली मेरु के १६ उपवास १६ पारणा ४ बेला ४ पारणा करना इस प्रकार इस पांच मेरु के व्रत २२० दिन में पूर्ण होते हैं । व्रत का दिन धर्मध्यान पूर्वक बिताये । व्रत के दिन बारह भावना का चिन्तवन करना चाहिए | सब पूजा करने के बाद पंचमेरु की पूजा करनी त्रिकाल सामायिक करना ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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