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व्रत कथा कोष
तब मुनिराज उसको कहने लगे कि हे श्रेष्ठि तुम मंगल त्रयोदशी व्रत करो तुम्हारा कल्याण होगा, और व्रत की विधि उसको बताई । सेठ ने प्रसन्नतापूर्वक व्रत को ग्रहण किया, और नगर में वापस श्राया, मुनिराज ने चातुर्मास उसी नगरी में करना निश्चित किया । वह दरिद्र सेठ अपनी पत्नी सहित एक उपवास एक पारणा करने लगा | उपवास के दिन दोनों ही मुनिराज को आहारदान देने लगे, चातुर्मास आनन्द से बीतने लगा, इतने में आश्विन शुक्ल १३ के दिन व्रत कर मुनिराज को दान दिया, और सेठ मुनिराज को उद्यान में पहुंचाने गया, रास्ते में मुनिराज कहने लगे हे सेठ अब आप अपने घर जाओ, तब सेठ मुनि की आज्ञा का पालन करने के लिये नमोस्तु करने लगा । मुनिराज ने उसको धर्मवृद्धिरस्तु कहते हुए, एक पत्थर उसके दुपट्टे में डाल दिया ।
तब वह गुरु का प्रसाद समझकर उस पत्थर को अपने घर लेकर आ गया उसने उस पत्थर की पूजा की, इतने में उसका लड़का खेलते २ वहां आया और एक लोहे की चीज उसके हाथ में थी वह लोहा उसके हाथ से उस पत्थर पर गिर पड़ा, लोहे का स्पर्श उस पत्थर से होते ही लोहा सोना बन गया, क्योंकि वह पारस पत्थर था, यह वार्ता सारे नगर में फैल गई और नगरवासी लोग वहां इकट्ठे हो कर उससे पूछने लगे । सारी वस्तुस्थिति सब ने जानी, और आश्चर्य करने लगे । जैन धर्म के ऊपर सब को दृढ़ श्रद्धान हो गया, उसी समय से धन तेरस पर्व प्रसिद्ध हो गया, आगे वह सेठ बहुत बड़ा बन गया, आनन्द से समय बिताने लगा, उस व्रत को वह अच्छी तरह से पालन करने लगा, अन्त में व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से संन्यास विधिपूर्वक मरकर स्वर्ग में देव हुआ ।
मोहनीय कर्म निवारण व्रत कथा
कोई भी अष्टान्हिका की अष्टमी के दिन शुद्ध होकर जिनमन्दिर में जावे, प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, अभिनन्दन भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्ष यक्षि व क्षेत्र - पाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं प्रभिनन्दन तीर्थंकराय यक्षेश्वर यक्ष व श्रृंखला यक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।