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________________ व्रत कथा कोष [ ४६५ लगावे, फूलमाला पहनावे, नारियल, गुड़, लाल वस्त्र, लड्डू आदि अर्पण करे, गुड़ के पूडे पांच चढ़ाकर नारियल फोड़े। ___ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं विमलनाथ तीर्थंकराय पाताल यक्ष वैरोटीयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्रों का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में तेरह पान लगाकर उनके ऊपर अष्टद्रव्य सजाकर एक नारियल रखे, अर्घ्य हाथ में लेवे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, धर्मध्यान से समय निकाले, सत्पात्रों को दान देवे, उपवास करे अथवा एकाशन करे, एकाशन में मात्र तीन वस्तू ग्रहण करे, इस प्रकार तेरह महिने उसी तिथि को पूजा कर व्रत करे, अन्त में उद्यापन करे, उस समय विमलनाथ विधान करके सत्पात्रों को दान देवे और व्रत को पूर्ण करे । कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आर्यखण्ड है उस खण्ड में मालवा नाम का देश है, उस देश में उज्जयिनी नाम की नगरी है, वहां पर एक गुणपाल नाम का दरिद्री रहता था, लेकिन वह सदाचारी और गुणश्रेष्ठ था । उसकी पत्नी का नाम गुणवती था, इनको एक गुणवान पुत्र था, लेकिन वो दरिद्र अवस्था का दुःख भोग रहा था, नगर में सब श्रावकवर्ग आहारदान देते थे, लेकिन उसकी शक्ति नहीं रहने से मुनि दान नहीं कर सकता था, सो मन में बड़ा दुःख मानता था। एक दिन जिनमन्दिर में सप्तऋद्धि सम्पन्न सोमचन्द्र नाम के मुनिराज को प्राया देखकर अपनी सेठानी से कहने लगा कि हे प्रिय अपन भी मुनिराज को प्राहार दान देवें, तब सेठानी कहने लगी कि हे पतिदेव आपकी इच्छा है तो अवश्य ही हम लोग भो आहारदान देवेंगे चाहे उपवास क्यों न करना पड़े। और दोनों ही पति-पत्नी मन्दिर में जाकर हाथ जोड़ते हुए मुनिराज से प्रार्थना करने लगे कि हे गुरु ! आप चातुर्मास यहां ही करें, हमें कोई हमारे कल्याण के लिए व्रत देवें ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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