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व्रत कथा कोष
भाद्रपद सृदि अष्टमी और चतुर्दशी को प्रोषधोपवास करना । इस दिन मौन का पालन करना, बाकी बचे हुए दिनों में एकाशन कर मौन पालन करना चाहिए । यह व्रत पांच वर्ष करना चाहिए पूर्ण होने पर उद्यापन करना, नहीं किया तो व्रत फिर से करो।
-गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय मेघमाला व्रत की विधि मेघमालां कथयाम्यहम्
भद्र भाद्रपदे मासे मेचके प्रतिपदिने । प्रारम्भेत व्रतं मासं प्रोषधैकान्तरेण च ॥ स्नातव्यं च सुनीरस्य धाराभिः ब्रह्मचारिभिः । प्राव्रतं परिधातव्यं शुक्लमेवांशुकद्वयम् ॥?।। जिनालये पुरःप्रस्थायाकाशे विष्टर शुभम् ? संस्थाप्य मेघ मालेयं शुक्लं धार्य वितान कम् ।। विष्टरे श्रीजिनाधीशं यथाशक्ति महोत्सवम् । स्नापयेदमतेनापि पञ्चधा परमेश्वरम् ।। संस्थाप्य कलशैश्चैनं वितानोपरि शान्तये ।
गन्धाम्बुचिन्तयेदेवं वारिमेघाकृतं यथा ॥१॥ पूर्व संस्नाप्य पूजयेत्, तिथिहानिवृद्धौ षोडशकारणवत्मेघमालाज्ञेया । मासिकवतत्वात्तत्पारणा पात्रदानादनन्तरं पञ्चवर्षयावत्करणीयम् । तत उद्यापन कुर्यात् ।
अर्थ :-मेघमाला व्रत की विधि का वर्णन किया जाता है । कल्याणकारी भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से एक महीने तक व्रत करना चाहिए । एकान्तर उपवास व्रत के दिनों में करना चाहिए । प्रत धारण करने वाले ब्रह्मचारो को स्वच्छ प्रासुक जल से स्नान करके व्रत विधि को सम्पन्न करना चाहिए । व्रत समाप्त होने तक दो शुक्ल वस्त्र धारण करने चाहिए । अर्थात् एक स्वच्छ धोती तथा दूसरा दुपट्टा धारण कर व्रत सम्पन्न करना चाहिए। यदि कोई नारी इस व्रत को सम्पन्न