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व्रत कथा कोष
मोक्ष सप्तमीव्रत
श्रावण सुदि सप्तमी को मोक्ष सप्तमी कहते हैं । श्रावरण सुदि षष्ठी को एकाशन करके सप्तमी को उपवास करना और अष्टमी को एकाशन करना, तीनों दिन पूजन, अभिषेक, धर्मध्यान, चिंतन, मनन, स्वाध्याय में बिताये । इस व्रत के दिन ॐ ह्रीं पार्श्वनाथाय नमः । इस मन्त्र का जाप त्रिकाल १०८ बार करना चाहिए । यह व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये । शक्ति नहीं हो तो व्रत दूना करना चाहिए ।
व्रत विधि
पोष वदि एकादशी को मौन एकादशी कहते हैं । इस दिन सोलह पहर का प्रोषधोपवास करना चाहिए। वह दिन धर्म कथा, पूजा आदि में व्यतीत करना चाहिए | त्रिकाल सामायिक करनी चाहिए मौन से रहना चाहिए । द्वादशी को अभिषेक पूजा आदि करके प्रथम प्रहर के बाद अतिथि को भोजन करावे, फिर भोजन करना चाहिए । यह व्रत क्रम से ११ वर्ष करना चाहिए । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । शक्ति न हो तो व्रत दुगुना करना चाहिए । इसके अलावा यह व्रत दो और विधि से किया जाता है ।
(१) नित्यमौन भोजन वमन स्नान मैथुन मलक्षेपण सामायिक जिनपूजन इस सात स्थानों पर ग्राजीवन मौन का पालन करना ।
(२) पौष सुदि १४ से प्रत्येक महिने की दोनों एकादशी को उपवास करना ऐसा एक वर्ष में २४ उपवास करना यह व्रत एक वर्ष करना । उस दिन मौन रहना चाहिए ।
उद्यापन विधि - शक्ति हो तो जिनमन्दिर बनवाना उसमें २४ तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान करना और घंटा, झालर, चांदवा, छत्र, चमर, शास्त्र वगैरह वस्तु २४-२४ मन्दिर में देना चाहिये ।
शास्त्र भण्डार खोलना, शास्त्रदान देना, महापूजा विधान करना, आहार, श्रौषधदान देना । अन्त में संन्यास लेकर समाधिमरण करना चाहिए । शक्ति हो तो जिनदीक्षा लेनी चाहिए ।