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________________ व्रत कथा कोष [ ४६३ कथा जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कोशल नामक एक देश है । उस देश में यमुना के किनारे कौशांबी नाम की एक नगरी थी। यह पद्मप्रभु भगवान की जन्म भूमि है । वहां पर पद्मप्रभु का समवशरण पाया था। यह उस समय की कहानी है । राजा हरिवाहन वहां राज्य करता था । उसकी रानी शशीप्रभा व उसका पुत्र सुकोशल था। वह सब विद्यानों में कुशल, सम्पन्न व पारंगत था । परन्तु उसका ध्यान हमेशा खेलने की ओर रहता था। वह अपना पूरा समय खेलने में खर्च करता था । राज्य के कार्यभार को बह देखता नहीं था। राजा को उसकी चिन्ता थी। एक दिन भाग्योदय से सोमप्रभु मुनिराज संघ के साथ कौशांबी आये । अपने परिवार व प्रजा के साथ वह वंदना के लिए गया। वंदना के बाद मुनि के मुख से धर्म श्रवणकर मुनि से पूछा-भगवान ! मेरे लड़के का ध्यान राज-काज की ओर क्यों नहीं जाता है, इसका कारण क्या है और भविष्य में उसका क्या होगा ? मुनि ने उत्तर दिया हे राजन ! पूर्व में इस देश में कूटन नगरी का राजा अपनी त्रिलोचना रानी के साथ राज्य करता था। उस समय वहां एक कुणबी रहता था उसकी लड़की तुगभद्रा थी, उस भाग्यहीन कन्या के पापोदय से बालपन में उसके माता-पिता परलोक चले गये इसलिये अपनी उदरपूर्ति रास्ते रास्ते में घूमते हुए जूठन आदि मिल जाय तो करती थी। फिर जब वह आठ वर्ष की हुई तब जंगल में घास काटने गयी थी, वहां पिहिताश्रव मुनि के दर्शन हुए । भूख से व्याकुल होने के कारण मुनिमहाराज का धर्मोपदेश उसको अच्छा नहीं लगा वह दुःखी थी। दुःख से व्याकुल होकर वह अपना दुःख महाराज को कहने लगी और उससे मुक्त होने का उपाय पूछा, तब मुनि महाराज ने कहा : बालिका यह तेरे पाप-कर्म का फल है तू अब मौन एकादशी का व्रत कर । इससे तेरे पाप कर्म का नाश होगा और दुःखद संसार का अन्त होगा। उसने यह व्रत अच्छी भक्तिभावना से किया जिससे वह मरकर हे राजन! तेरे घर में जन्म लिया है। यह तेरा पुत्र चरमशरीरी है, उसका राज्य भोग में
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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