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व्रत कथा कोष
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में कमल के पुष्प लेकर जिनमन्दिर के दरवाजे खोलकर ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक भगवान का दर्शन करने लगा।
इस शुभवार्ता को सेवकों ने राजा को जाकर बताया, तब राजा मृत्युञ्जय कुमार को हाथी पर बैठाकर उत्सवपूर्वक राजभवन में ले गया, वहां शुभ मुहूर्त में दोनों कन्याओं का विवाह कुमार के साथ में कर दिया, मृत्युञ्जय भी वहां के सुख भोगने लगा, कुछ समय वहां रहकर ससुर की प्राज्ञा लेकर वहां से मामा के साथ में उर्जयन्तगिरि पर चला गया, मेरी मरणावधि समीप आ गई है ऐसा समझकर एक शिला पर णमोकार मन्त्र का जाप्य करता हुआ उपसर्ग टलने तक नियम करके बैठ गया, उसी शिला के नीचे से एक सर्प ने पाकर मृत्युञ्जय कुमार को काट लिया, और उसी शिला के नीचे जाकर वापस सर्प बैठ गया।
णमोकार मन्त्र-जाप्य के प्रभाव से पद्मावति देवी का आसन कंपायमान हुअा, और देवी ने वहां आकर कुमार का सर्प विष दूर किया, और अपने स्थान को वापस चली गयी।
___ इतने में वहां पर मेघरथ राजा आकर कुमार मृत्युञ्जय को अपने घर ले गया और अपनी कन्या का विवाह कुमार के साथ में करके प्राधा राज्य देकर अपने पास रख लिया, कुछ समय वहां का राज्य करके और अपनी पत्नी को लेकर अपने नगर को चला, रास्ते में पूर्व की अपनी दोनों पत्नियों को लेकर कनकपुर नगर के उद्यान में उतरा, उन सबको जिनदत्त सेठ अपने घर भोजन के लिये ले गया और सबको आनन्द से वहां पर भोजन दिया, वनमाला ने अपनी कंचुकी पर लिखा हुआ मृत्युञ्जयकुमार का नाम दिखाया, तब मृत्युञ्जयकुमार अपना नाम देखकर संतुष्ट हुआ, और अपने विवाह पर होने वाली घटना को बताया, तब सब लोग इस घटना को सुनकर आनन्दित हुये, वनमाला को लेकर कुमार सुसीमा नगरी को चला गया, और सुख से समय बिताने लगा।
__ वनमाला इस माघमाला व्रत के पुण्य प्रभाव से स्त्रीलिंग का छेद करती हुई स्वर्ग में देव हुई, ऐसा इस व्रत का प्रभाव है।