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________________ व्रत कथा कोष [४५३ उपवास कहते हैं, इस उपवास का फल एक पल्य तक उपवास करने का फल मिलता है। कार्तिक शुक्ल तृतीया के उपवास को नन्दीश्वर उपवास कहते हैं, इस दिन उपवास का फल एक हजार पल्य उपवास करने का फल मिलता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी के उपवास को प्रातिहार्य उपवास कहते हैं, इस दिन उपवास करने से असंख्यात उपवास करने का फल मिलता है । कार्तिक कृष्ण एकादशी के उपवास का जिनेन्द्रध्वज उपवास नाम है, इस दिन उपवास करने का फल एक कोटि पल्य तक उपवास करने का फल मिलता है। मार्गशीर्ष तृतीया के दिन उपवास करने को आनन्दकर उपवास कहते हैं, इस दिन उपवास करने से असंख्यात उपवास करने का फल मिलता है । यह लघु मुक्तावली की विधि है। वहत मुक्तावली व्रत की विधि इस प्रकार है। पूजा क्रम उपरोक्त प्रकार से करना, उपवास का क्रम इस प्रकार है । एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा । तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा । पांच उपवास, एक पारणा । फिर चार उपवास एक पारणा, ३ तीन उपवास एक पारणा । दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा, इस प्रकार यह व्रत चौतीस दिन में पूर्ण होता है, जैसी शक्ति हो वैसा करे। कथा इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में कच्छ नामक एक विस्तीर्ण देश है, उसके विजयाद्ध पर्वत पर उत्तर श्रेणी में चक्रवालपुर नामक एक अत्यन्त मनोहर नगर है। वहां पर यशोधर नाम का राजा राज्य करता था, उसको विजयावती नाम की सौन्दर्यवती स्त्री थी, उस राजा का सोमदत्त नाम का पुरोहित और मदनवेगा नाम की एक सुन्दर स्त्री थी, उस पुरोहित का एक विशाखदत्त नाम का पुत्र था।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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