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व्रत कथा कोष
करे, जिनवाणी, निर्ग्रन्थगुरु की अष्ट द्रव्य से पूजा करे, फिर यक्षयक्षि, क्षेत्रपाल की यथायोग्य पूजा कर अर्घ्यपूर्वक सम्मान करे ।
____ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधजिनधर्म जिनागम जिन चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
___ इस मन्त्र से पुष्पों से १०८ बार जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़े, शास्त्रस्वाध्याय करके व्रत कथा पढ़े, एक थाली में नौ पान लगाकर उसके ऊपर जल, गंध, अक्षत, पुष्प, फल आदि रखकर एक महाअर्घ्य करे, उस अर्घ्य को उतारता हुआ, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा देवे, मंगल आरती उतारे, हाथों में का अर्घ्य चढ़ा देवे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान से समय बितावे, दूसरे दिन सत्पात्रों को दान देकर स्वयं पारणा करे । इस क्रम से भाद्रपद कृष्ण ८ त्रयोदशी, आश्विन शुक्ला एकादशी व कृष्ण द्वादशी, कार्तिक शुक्ल तृतीया व एकादशी और कार्तिक कृष्ण एकादशी, उसके बाद मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया, इस तिथि को भी पूजा उपरोक्त क्रम से ही करना चाहिए ।
____ इस प्रकार यह व्रत नौ वर्ष तक करना चाहिये, अन्त में उद्यापन करना चाहिए, उद्यापन के समय आदिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा गोमुखयक्ष चक्रेश्वरी यक्षी सहित तैयार कराकर पंचकल्याण प्रतिष्ठा करना, मन्दिर में आवश्यक उपकरण नवीन बनवाकर रखना, नौ मुनियों को आहारदान देना, नौ प्रायिकानों को वस्त्रदान करना, नौ दम्पति वर्ग को भोजन कराकर वस्त्रादिक देकर सम्मान करना चाहिये, इस प्रकार व्रत विधि है।
___ इस प्रकार व्रत विधि में भाद्रशुक्ला सप्तमी को होने वाले उपवास को निर्वाणसिद्धि कहा है । इस दिन उपवास के फल से निर्वाण सुख प्राप्त होता है । भाद्रकृष्ण अष्टमी को होने वाले आदित्यप्रभा ऐसा नाम है । इस उपवास का फल एक सहस्रपल्य उपवास का फल उपवास का प्राप्त होता है ।
भाद्रकृष्ण त्रयोदशी के उपवास का चन्द्रप्रभा ऐसा नाम है । इस उपवास का फल एक पल्य तक उपवास करने का मिलता है, आश्विन शुक्ल एकादशी के उपवास का कुमारसम्भव उपवास नाम है, इस उपवास का फल एक हजार पल्य उपवास करने का फल है, आश्विन कृष्ण द्वादशी के उपवास को सर्वार्थसिद्धि