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व्रत कथा कोष
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किये जाते हैं । इस प्रकार व्रत के मध्य में नौ बार पारणा और २५ दिन व्रत कि य जाता है । इस व्रत की गिनती भी निरवधि व्रतों में है ।
विवेचन :-मुक्तावली व्रत का अर्थ है मोतियों की लड़ी, जो व्रत मोतियों की लड़ी के समान हो, वही मुक्तावली है । मुक्तावली व्रत में एक उपवास से प्रारम्भ कर पांच उपवास तक किये जाते हैं, पश्चात् पांच पर से घटते-घटते एक उपवास पर आ जाते हैं । इस प्रकार यह व्रत गोल माला के समान बन जाता है। २५ दिन उपवास करने पर केवल नौ दिन पारणा करनी पड़ती है । इस व्रत के दिनों में णमोकार मन्त्र का तीन बार जाप करना चाहिए । व्रत के दिनों में कषाय और विकथाओं का त्याग करना चाहिए। इस व्रत के विधिपूर्वक धारण करने से सांसारिक उत्तम भोगों को भोगने के उपरान्त मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
मुक्तावली व्रत का स्वरूप मुक्तावल्यास्तु नवोपवासाः भाद्रपदे शुक्ला सप्तमी, प्राविश्ने कृष्णाष्टमी, त्रयोदशी, आश्विने शुक्ला एकादशी, कातिके कृष्णा द्वादशी, कातिके शुक्ला तृतीया, शुक्ला एकादशी, मार्गशीर्ष कृष्ण कादशी, शुक्लपक्षे तृतीया चेति नवोपवासाः स्युः।
अर्थ :-मुक्तावली व्रत में नौ उपवास प्रतिवर्ष किये जाते हैं । पहला उपवास भाद्रशुक्ला सप्तमी को, दूसरा आश्विन कृष्णाष्टमी को, तीसरा आश्विन कृष्णा त्रयोदशी को, चौथा आश्विन शुक्ला एकादशी को, पांचवां कार्तिक शुक्ला तृतीया को, सातवाँ कार्तिक शुक्ला एकादशी को, आठवां मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को और नौवाँ मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया को करना चाहिए । उपवास के पहले और अगले दिन एकाशन करना चाहिए। यह लघु मुक्तावली व्रत को विधि है । बृहद् मुक्तावली व्रत में कुल २५ उपवास और ६ पारणाएं की जाती हैं।
____ मुक्तावलीव्रत कथा भाद्रपद शुक्ला ७ के दिन प्रातःकाल में शुद्ध वस्त्र पहनकर सर्व प्रकार के पूजाद्रव्य हाथ में लेकर जिन मन्दिर में जावे । तीन प्रदक्षिणा देवे और भगवान को ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर नवदेवता की प्रतिमा स्थापन करके, पंचामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से जयमालापूर्वक स्तोत्र सहित पूजा