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________________ ४५० ] व्रत कथा कोष भी जाप्य करे, जिनसहस्रनाम पढ़े, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, तीन दिन कांजीहार करे, एक समय । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे । इस प्रकार इस व्रत को तीन वर्ष करके अंत में उद्यापन करे, उस समय दिनाथ विधान (भक्तामर विधान) करके महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे | कथा इस भरत क्षेत्र में त्रिलोकतिलक नामक सुन्दर नगर है, उस नगर में जयवर्म नाम का राजा अपनी जयावति रानो के साथ में सुख से राज्य करता था । उसको एक लक्ष्मीमती नाम की गुणवान कन्या थी, एक दिन राजा के यहां यशोधर नामक मुनिराज का आहार हुआ, आहार होने के बाद राजा ने पूछा गुरुदेव मेरी कन्या का वर कौन होगा, तब गुरुदेव कहने लगे, राजन कनकपुर नगर के राजा जयधर के पुत्र नागकुमार के साथ तुम्हारी कन्या का विवाह होगा, उसको मंगलभूषणव्रत करना चाहिए, ऐसा कहते हुये विधि कह सुनाई । उस कन्या ने प्रसन्नतापूर्वक व्रत को ग्रहण किया, मुनिराज ने कहा तीन वर्ष में तुम्हारी शादी होगी, ऐसा कहकर जंगल को चले गये, कन्या ने यथाविधि व्रत का पालन किया, व्रत के प्रभाव से उसको नागकुमार-सा वर मिला, सुखों को भोगकर अंत में संसार से विरक्त होकर प्रार्यिका दीक्षा लेकर समाधिमरण करके स्वर्ग में देव हुई । मुक्तावली व्रतकी विधि का नाम मुक्तावली ? कथं चेयं क्रियते सज्जनोत्तमैः ? मुक्तावलयामेकः द्वौ त्रयश्चत्वारः पञ्चोपवासाः पश्चात् चत्वारः त्रयो द्वावेकः उपवासाः भवन्ति । अस्य व्रतस्योपवासाः पञ्चविंशतिः पाररणा नवदिनानि । इति चतुस्त्रिशत् दिनानि । एतद्धि निरवधिः । अर्थ :- मुक्तावली व्रत किसे कहते हैं ? यह सज्जन पुरुषों के द्वारा कैसे किया जाता है ? प्राचार्य कहते हैं कि मुक्तावली व्रत में पहले एक उपवास, फिर दो उपवास, पश्चात् तीन उपवास, चार उपवास अनन्तर पांच उपवास किये जाते हैं । पांच उपवास के पश्चात् चार उपवास, तीन उपवास, दो उपवास और एक उपवास
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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