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व्रत कथा कोष
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व्रत के प्रभाव से सब लोग सद्गति को प्राप्त हुये । वो कुसुमदत्ता अपने मरण काल में दीक्षा लेकर घोर तपश्चरण करके अच्युत स्वर्ग में देव हुई । कुसुमदत्त सेठ भी दीक्षा लेकर मोक्ष को गये।
अथ भरत चक्रवति व्रत कथा व्रत विधि :-चैत्र शुक्ला ४ को एकाशन करना । ५ कोशुद्ध वस्त्र पहन कर सर्व पूजाद्रव्य लेकर मन्दिर जाये। जिनालय की तीन प्रदक्षिणा लगाकर नमस्कार करे । वासुपूज्य तीर्थंकर प्रतिमा षण्मुख यक्ष व गांधारी यक्षी के साथ स्थापित करके पंचामृताभिषेक करे । प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे । एक पाटे पर भगवान के सामने १२ पान रखकर अक्षत, फल, फल, नैवेद्य रखकर पूज्य १२ चक्रवर्ती राजाओं का स्मरण करना । श्रुत व गणधर इनकी पूजा करे । यक्षयक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करे।
___ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ वासुपूज्य तीर्थंकराय षण्मुखयक्ष गांधारीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प चढ़ावे तथा णमोकर मन्त्र का १०८ बार जाप करे । इस कथा को पड़े । एक पात्र में १२ पान रखकर अष्टद्रव्य तथा नारियल रखकर महार्य करे। उस दिन उपवास करना चाहिए । सत्पात्र को आहारादि दान करे । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे । तीन दिन ब्रह्मचर्य से रहे ।
इस प्रकार माह में एक बार उसी तिथि को पूजा करे । ऐसे १२ पूजा पूर्ण होने पर फाल्गुन अष्टान्हिका में इसका उद्यापन करे । वासुपूज्य तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करना चाहिये । चतुःसंघ को चतुर्विध दान देकर पूर्ण विधि अनुसार व्रत करे।
कथा
जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व विदेह क्षेत्र में कच्छ देश है । प्रभंकर नगर में अतिगृद्ध नाम का राजा राज्य करता था। उसने यह चक्रवर्ती व्रत करके उत्कृष्ट पुण्य संपादन किया । किन्तु बहुत प्रारम्भ और परिग्रह के मोह से वह तीसरे नरक गया। वहां दश सागरोपम वर्ष तक अनेक दुःख भोगकर पूर्वोक्त देश के वन में व्याघ्र हमा। उस समय वहां प्रीतिवर्धन नाम के राजा राज्य करते थे । एक दिन अपने परिवार सहित वन विहार करने को निकले थे कि मार्ग में उसे शुभ शकुन हुआ । यह देख पुरोहित से पूछा कि इसका क्या फल है । तब पुरोहित बोला-तुम्हें वन में सत्पात्र