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________________ ४३२ ] व्रत कथा कोष गये। उधर पुरोहित पुत्री सोमदत्ता की वाणी बंद हो गई, अनेक प्रकार का औषधोपचार करने पर भी रोग नहीं खतम हुआ, माता-पिता को बहुत चिंता रहने लगी। एक बार उस नगरी के उद्यान में यशोधर मुनिश्वर पधारे, इस शुभ वार्ता को सुनकर राजा अपने परिजन पुरजनों के साथ उद्यान में मुनिराज के दर्शन को गया धर्म श्रवण कर पुरोहित हाथ जोड़ कर विनय से प्रार्थना करने लगा कि हे देव महामुनिश्वर मेरी कन्या की वाणी क्यों एकदम बन्द हो गई क्या कारण है, उसके गूगेपन का कारण कहो । तब अवधिज्ञान-सम्पन्न महामुनिश्वर कहने लगे कि कुछ दिन पूर्व इस नगरी में सुगुप्ताचार्य महामुनि पाहार के लिए आये थे तब इस सोम दत्ता ने ग्लानिपूर्वक मुनिराज के ऊपर थूक दिया था, उसी पाप के कारण तुम्हारी लड़की की वाणी बन्द हो गई है, इसलिए अब इसको वृहत श्रुतस्कंध व्रत विधान यथाविधि पालन करने से इसका गूगापन हट जायेगा और फिर से बोलने लगेगी, ऐसा कहकर व्रत विधि कह सुनाई। ऐसा सुनकर सब को आनन्द हुअा। राजा ने, रानी ने, पुरोहित व उसकी सोमदत्ता कन्या ने बड़े आनन्द से श्रुतस्कंध व्रत को स्वीकार किया, मुनिराज को नमस्कार कर सब लोग अपनी नगरी में वापस आ गये और यथाविधि सब लोग व्रत का पालन करने लगे। व्रत के पूर्ण होने पर उद्यापन किया, उसी समय पुरोहित कन्या सोमदत्ता का गूगापन हट गया, बोलना चालू हो गया। प्रागे सोमदत्ता ने प्रायिका के पास जाकर ब्रह्मचर्य व्रत को ग्रहण कर लिया, थोड़े ही दिनों में प्रायिका दीक्षा लेकर अन्त में समाधिमरण धारण किया और मरकर सोलहवें स्वर्ग में इन्द्र होकर उत्पन्न हो गई । वहां का सुख भोगकर पूर्व विदेह के सीता नदी के उत्तर भाग में प्रकावती देश में रत्नसंचय नाम का एक सुन्दर नगर है वहां रत्नवाहन नाम का राजा पृथ्वीमति रानी के साथ राज्य करता था, उस राजा के यहां वह सोलहवें स्वर्ग का इन्द्र कंठकुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। कालक्रमानुसार सर्व प्रकार का राजेश्वरी सुख भोगकर अन्त में दीक्षा लेकर कर्म काट कर मोक्ष को गया।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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