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________________ व्रत कथा कोष [ ४३१ सुशोभित कुंभ रख कर उसके ऊपर एक थाली रखे, उस थाली में प्रष्ट गंध से या केशर से श्रुतस्कंध यन्त्र निकाले, उस यन्त्र पर २६ पान रखे, उन पानों पर भ्रष्ट द्रव्य 'रखे । उसके बाद अभिषेक पीठ पर चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षि सहित स्थापन करे, श्रुतस्कंध यंत्र स्थापन करें, फिर पञ्चामृताभिषेक करे, चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा, श्रुतस्कंध यन्त्र को मंडल पर जो कुंभ के ऊपर थाली रखी है, उस थाली मैं विराजमान करे, फिर नित्म पूजा विधि करके श्रुत स्कंध विधान करे, २६ नैवेद्य चढ़ावे, श्रुतस्कंध विधान के मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप करे, एक माला णमोकार मन्त्र की फेरे, शास्त्र स्वाध्याय करे, ब्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाश्रर्ध्य करके तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल आरती उतारता हुआ अर्ध को चढ़ा देवे । उस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे, उपवास पूर्वक धर्मध्यान से समय बिताबे, दूसरे दिन सर्व पूजा विधि करके स्वयंभु स्तोत्र का पाठ करे । इस प्रकार यह व्रत १४ वर्ष पालन कर अन्त में उद्यापन करें, एक नवीन श्रुत स्कंध यन्त्र तैयार कर, उसकी प्रतिष्ठा करावे, यथाशक्ति चतुविध संघ को दान देवे । इस प्रकार व्रत की विधि कही 1 कथा इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र के अन्दर पुष्कलावती नाम का देश हैं, 'उस देश में पुंडरी किरणी नाम को कमरी है, उस नगरी में एक बिजयंधर राजा अपनी 'रानी विशालनेत्रा के साथ सुख से राज्य करता था । उस राजा का एक सोमदत्त पुरोहित था, पुरोहित की पत्नी का नाम लक्ष्मीमती था, पुरोहित को सोमदत्ता नाम की एक पुत्री थी । एक दिन सुगुप्ताचार्य नाम के महामुनिश्वर मासोपवास के बाद श्राहारार्थ नगर में भ्रमण कर रहे थे, तब पुरोहित की लड़की सोमदत्ता ने मुनिराज को देखकर ग्लानि करती हुई मुनिराज के ऊपर थूक दिया, मुनिराज अन्तराय मान कर जंगल को चले गये । वहां उन्होंने आत्म ध्यान के बल से केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष चले
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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