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________________ ४३० ] व्रत कथा कोष का विवाह शुभ मुहूर्त में उस विद्याधर राजा के साथ कर दिया, कुछ दिन अपनी रानी के साथ उस नगरी में रहकर अपने नगर में चला गया, वह विद्याधर राजा अपनी रानी के साथ में सुख से राज्य करता था। एक दिन मासोपवासी ज्ञानसागर मुनि महाराज आहार के लिये राजमहल में आये, तब रूपमति रानी ने नवधाभक्ति से आहारदान दिया। दान के प्रभाव से पंचाश्चर्य वृष्टि हुई, आहार होने के बाद मुनिराज को रानी ने ऊचे आसन पर बैठाया, तब रूपमती राणी ने मुनिराज से कहा कि हे देव, मेरे पूर्व भव कहो, मनिराज ने उसके सर्व भव प्रपंच को कह सुनाया, तब रानी ने कहा हे देव आप कृपा करके मेरे को बुद्धाअष्टमी व्रत की विधि कहो, मुनिराज ने व्रत की विधि कही तब रानी ने व्रत को स्वीकार किया और व्रत को विधिपूर्वक पाला, अंत में उद्यापन किया। एक दिन रूपमति अपने पीहर चंपापुर में विमान से प्रायो, सहस्रकूट जिनमन्दिर में दर्शन को गई, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार किया, सभा मंडप में आई, वहां एक श्रीमती नामक प्रायिका जी को देखा, उनको नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुना, और घर को गई । आगे उस व्रत को अपने पति सहित पालन कर, व्रत का उद्यापन किया, और अपने नगर में वापस आ गई, राजऐश्वर्य का भोग कर दोनों ही अन्त में दीक्षा लेकर स्वर्ग में गये, परम्परा से मोक्ष को जायेंगे । अथ बृहत श्रु तस्कंध व्रत कथा कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन व्रति क एकाशन का नियम करके प्रातः स्नान प्रादि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र पहने पूजा का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिर में जादे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यापथ शुद्धि करके जिनेन्द्र प्रभु को साष्टांग नमस्कार करे, उसके बाद सभा मण्डप को शृगारित करे, ऊपर चंदोवा बांधे, वेदि पर पांच रंगों से श्रुतस्कंध यन्त्र मण्डल बनावे, उसके आगे चतुरस्त्र पंच मंडल निकाले, पाठ मंगल कुभ रख कर अष्ट मंगल द्रव्य रखे, पञ्चवर्ण सूत्र से मण्डल को तीन बार वेष्टित कर नवीन केशरिया या शुक्ल वस्त्र लगावे, मण्डल के मध्य में एक
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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