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व्रत कथा कोष
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भगवान की एक नवीन मूर्ति बनवाकर पंचकल्याण प्रतिष्ठा करे, एक पाटे पर गंध से नौ साथिया निकालकर ऊपर पान रखे, उसके ऊपर प्रत्येक पर प्रष्टद्रव्य रखे, उसके आगे एक बड़ा धान्य का ढेर बनावे, नौ प्रकार का पकवान चढ़ावे, आठ मुनियों के संघको आहारदानादि देवे, आर्यिका व ब्रह्मचारी को भी भोजनादि देवे, श्रावक श्राविकानों को भोजन करावे, पान सुपारी खिलावे, सम्मान करे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में प्रार्यखंड है, उसमें अंग देश है, उस देश में चंपापुर नगर हैं, उस नगर का राजा विजितांक अपनी रानी गुणवती सहित सुख से राज्य करता था ।
उस नगर में गुणवर्मा नाम का ब्राह्मण सावित्री स्त्री के साथ रहता था, गुणवर्मा का पिता पुत्रमोह से मरकर कुत्ता की पर्याय में गया, लोग उसको देखकर ग्लानि से पत्थर मारते थे । एक दिन उस नगर के कुछ श्रावक लोग बुद्धाष्टमी व्रत करने को जिनमन्दिर में जा रहे थे, तब वह कुत्ता भी सब लोगों के साथ जिनमन्दिर में गया, श्रावक लोग अपने २ पाँव धोकर मन्दिर में गये, वह कुत्ता भी पांव धोये हुये पानी में ही अपना शरीर प्रलोड़ित करके मन्दिर में चला गया और श्रावकों द्वारा होने वाली बुद्धाष्टमी व्रत की पूजा को अच्छी तरह से देखने लगा, पूजा को देखते ही शांत हो गया, वही कुत्ता पूजा देखने के पुण्य से मरकर उस नगर के राजा विजितांक की रानो गुणवती के गर्भ से रूपमति नामक कन्या होकर उत्पन्न हुआ, श्रागे जाकर वह रूपमति कन्या सुन्दर व विद्यावान हुई । कन्या तारुण्य अवस्था में आने पर एक दिन अपने महल के गच्छी पर बैठी थी, कि एक चित्रवाहन नाम का विद्याधर राजा अपने विमान में बैठकर कहीं जा रहा था, अचानक दृष्टि उसी कन्या पर पड़ी, कन्या को देखते ही विद्याधर नीचे उतर आया और विजितांक राजा को नमस्कार कर राज्य सभा में बैठ गया, राजा को कहने लगा कि राजन में विद्याधर राजा हूं, मेरा नाम चित्रवाहन है, आपकी लड़की पर में मोहित हो गया हूं, अपनी लड़की का विवाह मेरे साथ कर दीजिये ।
राजा ने यह सब सुना और मन में प्रसन्नता व्यक्त की और अपनी लड़की