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________________ प्रत कथा कोष T४२३ इस प्रकार एक महीने में एक एक बार, ऐसे १२ तिथि पूर्ण होने पर कार्तिक माह की अष्टान्हिका में इसका उद्यापन करे। उस समय कुसुमांजलि तीर्थंकर का विधान कर महाभिषेक करे । १०८ कमलों के पुष्पों से पूजा करे। चतुःविध संघ को दान देवे । १२ दम्पतियों को भोजन करावे। फिर उनका सत्कार करे । मन्दिर बनावे या जीर्णोद्धार करावे । मन्दिर में उपकरण प्रादि भेंट करावे । _ कथा यह व्रत पहले ऐरावत क्षेत्र में वीरसेन राजा ने पालन किया था जिससे बह चक्रवर्ति राजा हुअा, भावीकाल में वह तीर्थंकर होगा, यही इस व्रत का महत्व है । बलगोबन्द व्रत कथा (बलप्रद) भाद्र शुक्ल दशमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिन कर पूजा अभिषेक का द्रव्य लेकर मन्दिर जी जावे, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, बेदी पर चौबीसी प्रतिमा स्थापन कर पंचामताभिषेक करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षिणियों की और क्षेत्रपाल की पूजा करे, जिनेन्द्र भगवान की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र को १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, ब्रत कथा पढ़े, एक थाली में अर्घ्य रख कर नारियल रखे, फिर हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाधे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य जिनेन्द्र को चढ़ा देवे । ब्रह्मचर्य का पालन करे, उस दिन उपवास करे, धर्मध्यान से समय बितावे, दूसरे दिन दान देकर स्वयं पारणा करे। -- इसी क्रम से इस व्रत को दश वर्ष करे अथवा देश महीने करें, अन्त में उद्यापन करे, उस समय महाभिषेक करके दश प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे, चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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