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व्रत कथा काष
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चंद्रवर्धन नाम का बड़ा देश है, उस देश में चन्द्रपुर नाम का मनोहर नगर है, उस नगर में चंद्रसेन नाम का राजा अपनी रानी चन्द्रलेखा के साथ राज्य करता था, एक दिन नगर के उद्यान में यशोभद्र नाम के मुनि आये, यह समाचार राजा को वनपाल से प्राप्त होते ही पुरजन परिजन सहित मुनिदर्शन के लिए उद्यान में गया, वहां जाकर मुनि दर्शन करके धर्मसभा में जाकर बैठा । कुछ समय धर्मोपदेश सुनकर मुनिराज को हाथ जोड़ते हुये विनती करने लगा कि हे गुरुदेव हमारे प्रात्म-कल्याण के लिए कोई ऐसा व्रत विधान कहो कि जिससे प्रात्मकल्याण हो, तब मुनिराज ने कहा कि हे राजन आप लोग बलगोबंद व्रत का पालन करो, ऐसा कहते हुए व्रत की विधि को कहा। इस व्रत को किसने पालन किया उस की कथा कहता हूं । सुनो।
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में प्रार्यखण्ड जन्मनिलय नाम का एक देश है । उस देश में नित्य वसंत नाम का एक सुन्दर नगर है। उस नगर में सत्यसागर नाम का राजा अपनी सदगुणी रानी चितात्सवा के साथ सुख से राज्य करता था। एक बार राजा के घर भूतानन्द नाम के मुनिराज पाहार के लिए आये, आहार होने के बाद मुनिराज को पाटे पर विराजमान करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा कि हे गुरुदेव ! मेरे को सन्तान सुख की प्राप्ति है कि नहीं, कृपा करके कहें।
___ तब मुनिराज कहने लगे कि राजन तुमको दो पुत्ररत्न उत्पन्न होंगे, लेकिन उसके लिए आपको बलगोबंद व्रत करना चाहिए, ऐसा कहकर व्रत का स्वरूप बताया, राजा ने प्रसन्न होकर व्रत को स्वीकार किया । मुनिराज जंगल को वापस चले गये, राजा ने व्रत को विधि से पालन किया । अन्त में उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से राजा को दो गुणवान पुत्र उत्पन्न हुये, सुख से राज्य किया, अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर स्वर्ग में देव हुआ। वहां से मनुष्य भव धारण कर दीक्षा ग्रहण कर घोर तपश्चरण करता हुमा कर्म काट कर मोक्ष को गया।
चन्द्रसेन राजा ने इस व्रत की कथा को सुनकर आनन्द से इस व्रत को ग्रहण