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________________ ४२२ ] ऐसे व्यक्ति की लाश को कुत्त े भी नहीं नितान्त आवश्यक है कि वह प्रतिदिन करे । व्रत कथा कोष खाते हैं । अतएव प्रत्येक गृहस्थ के लिए यह नियमपूर्वक दान देवे तथा कुछ तपश्चर्या भी वास्तविक तप तो इच्छाओं का रोकना ही है या दिन को कुछ समय की अवधि कर कायोत्सर्ग करना भी तप है । अभ्यास के लिए कायोत्सर्ग आदि का भी नियम करना तथा अपनी भोगोपभोग की लालसाओं को घटाना जीवन को उन्नति की ओर ले जाना है । पंचश्रुतज्ञान व्रत पंचतज्ञानह व्रतसार, कर उपवास निरन्तर धार । इक सौ अड़सठ दिन परवान, जब चाहे प्रारम्भे थान || —वर्धमान पुराण भावार्थ :- - यह व्रत ३३६ दिन में समाप्त होता है, जिसमें १६८ उपवास और १६८ पारणे होते है । एक उपवास एक पारणा इस अनुक्रम से करे । ॐ ह्रीं पंचतज्ञानाय नमः इस मन्त्र का जाप्य करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । अथ ब्रह्मदत्त चक्रवति व्रत कथा व्रत विधि :- कार्तिक शु० दशमी के दिन एकाशन करे, और ११ के दिन शुद्ध कपड़े पहन कर मन्दिर जाये, दर्शन प्रादि करने के बाद वेदि पर कुसुमांजलि तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षी के साथ स्थापित करे फिर पंचामृताभिषेक करे । एक पाटे पर १२ स्वस्तिक निकाल कर उस पर अष्टद्रव्य रखकर निर्वाण से कुसुमांजली तीर्थंकर तक पूजा करे । जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं श्री कुसुपांजली तीर्थंकराय यक्षयक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे । श्री जिन सहस्रनाम स्तोत्र पढ़े । यह कथा पढ़े । फिर एक पात्र में अष्टद्रव्य से प्रारतो करे । उस दिन उपवास करे । धर्मध्यान पूर्वक समय निकाले । चार प्रकार का दान देवे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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