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________________ दूसरी विधि :- उपरोक्त पाँच महिनों के दोनों पक्ष में अर्थात् शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की १४ को उपवास करना । अर्थात् सब १० उपवास होते हैं । इसमें रूपचतुर्दशी व शील चतुर्दशी के उपवास मिलाने पर पंच चतुर्दशी व्रत होता है । आषाढ़ की शुक्ल १४ को शील चतुर्दशी, और श्रावरण की शुक्ल चतुर्दशी रूप चतुर्दशी कहते हैं । वर्ष में कई महिने अथवा दो महिने करने से मासिक व्रत कहते हैं । अथ पंचाणु व्रत कथा व विधि चैत्र शुक्ला अष्टमी से या कोई भी महिने की अष्टमी से व्रत प्रारम्भ कर सकते हैं, सप्तमी के दिन एकाशन कर अष्टमी को प्रातः स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा द्रव्य हाथ में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्याय शुद्धि करता हुआ व्रतिक भगवान को साष्टांग नमस्कार करे । अभिषेक पीठ पर भगवान बाहुबली और चौबीस तीर्थंकर की मूर्ति यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृत अभिषेक करे, एक पाटे पर केसर से वा अष्टगंध से २५ स्वस्तिक निकाले, उन स्वस्तिकों पर एक २ पान लगावे, उन पानों पर गंधाक्षत, फूल, फल आदि रखे, चौबीस तीर्थंकर व बाहुबली भगवान की अष्टद्रव्य से पूजा कर श्रुत की पूजा करे, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षी क्षेत्रपाल को अर्घ्य समर्पण करे । ॐ ह्रीं श्रहं चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षी सहितेभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप करे, १०८ बार णमोकार जपे, बाहुबलि जिनदेवाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं इस मन्त्र का भी १०८ बार जाप करे, उसके बाद पंचाणु व्रत पूजा श्रागे लिखे अनुसार करे । " १ ॐ ह्रीं श्रीं छेदना तिचार रहिताय श्रहिंसाणु व्रताय नमः स्वाहा । २, ३, " बंदना तिचार पीडनातिचार श्रतिभारारोपरणा तिचार अन्नपाननिरोधातिचार ४ ५, 11 " 12 11 " व्रत कथा कोष ". " " 11 11 " 13 " 11 13 17 " 19 11 [ ४१६ 17 31 11
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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