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व्रत कथा कोष
की नवीन मूर्ति बनवाकर पञ्चकल्याण प्रतिष्ठा करे, पांच प्रकार का नैवेद्य बनाकर सोलह भाग करे।
___एक पञ्चपरमेष्ठि को, १ मूल नायक भगवान को श्रुत, गुरु चक्रेश्वरी रोहिणी ज्वालिनी, पद्मावती, जल देवतादि को नैवेद्य चढ़ावे, अर्पण करे, सौभाग्यवती पांच स्त्रियों को पान, सुपारी, फल, अक्षत, पुष्प आदि देकर सत्कार करे, तीन मुनि संघ को आहार दान देवे, पांच प्रायिका, पांच ब्रह्मचारी को आहार देकर वस्त्रादि उपकरण देवे, इस व्रत की विधि यही है।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांभोज नाम का विशाल देश है, उसमें भतिलक नाम का एक गांव है, उस नगर में राजा सिंहविक्रम अपनी पद्मावती रानी के साथ सुख से राज्य करता था, एक दिन नगर के उद्यान में मुनिगुप्त नाम के दिव्य ज्ञानी महामुनिश्वर पधारे, यह शुभ वार्ता राजा को मालूम पड़ते ही नगरवासियों के साथ अपने परिवार सहित मुनिराज के दर्शन करने को गये, साथ में नगरवासी लोग भी गये, मुनिराज का धर्मोपदेश सुना, कुछ समय बाद पद्मावती रानी ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि स्वामिन मेरा संसार भ्रमण कम हो उसके लिए कुछ सुख का उपाय कहो ।
तब मुनिराज कहने लगे कि हे देवि ! तुम्हारे द्वारा पञ्चरपमेष्ठि व्रत करने योग्य है, ऐसा कहकर व्रत विधान कहा । सब लोगों ने व्रत का स्वरूप सुनकर आनन्द व्यक्त किया, रानी पद्मावती ने भक्तिपूर्वक व्रत ग्रहण किया, सब लोग नगर में वापस लौट आये। यथाविधि रानी ने व्रत का पालन किया, अन्त में समाधिमरण कर स्वर्ग सुख भोगा, परम्परा से मोक्ष को गये ।
पार्श्वतृतीया (तदगी) व्रत कथा श्रावण शुक्ला तृतीया के दिन इस व्रत को पालने वाला व्रतिक स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिन कर अभिषेक पूजा की सामग्री लेकर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पार्श्वनाथ