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________________ व्रत कथा कोष उपवास, छः षष्ठियों के छः उपवास, पांच पञ्चमियों के पांच उपवास, दस दशमियों के दस उपवास और तोन तृतीयाओं के तीन उपवास, इस प्रकार कुल ३६ उपवास किये जाते हैं । उपाध्याय परमेष्ठि के २५ मूल गुण होते हैं, उनके लिए ग्यारह एकादशियों के ग्यारह उपवास और चौदह चतुर्दशियों के चौदह उपवास सम्पन्न किये जाते हैं । साधु परमेष्ठि के २८ मूल गुण हैं । इनके लिए पन्द्रह पञ्चमियों के पन्द्रह उपवास, छः षष्ठियों के छः उपवास एवं सात प्रतिपदाओं के सात उपवास किये जाते हैं । इस प्रकार कुल १४३ उपवास करने का विधान है । जिस परमेष्ठि के मूलगुणों के उपवास किये जा रहे हैं, ब्रत के दिन उस परमेष्ठी के गुणों का चिंतन करना तथा ॐ ह्रीं अर्हदभ्यो नमः, ॐ ह्रीं सिद्ध भ्यो नमः, ॐ ह्रीं प्राचार्येभ्यो नमः, ॐ ह्रीं उपाध्यायेभ्यो नमः, ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नमः का क्रमशः जाप करना चाहिए। अथ पंचपरमेष्ठी व्रत कथा प्राषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन मास की अष्टान्हिका में व्रतिक अष्टमी के दिन स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहन सर्व प्रकार के अभिषेक पूजा का सामान हाथों में लेकर जिन मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को हाथ जोड़ नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पञ्चपरमेष्ठि की मूर्ति स्थापन कर पञ्चामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, शास्त्र की पूजा, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि की व क्षेत्र पाल की भी अर्चना करे । ____ॐ ह्रां ह्रीं ह. ह्रौं ह्रः असि प्रा उ सा अहं पञ्चपरमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा। इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक महा अर्घ्य करके मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल प्रारती उतारे, शक्ति प्रमाण उपवास या एकाशन करे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, धर्म ध्यान से समय निकाले, इसी क्रम से प्रत्येक महीने की पौणिमा को ऐसी पूजा करे, चार महीना पूर्ण होने पर उद्यापन करे, उस समय एक पंचपरमेष्ठि भगवान
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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