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व्रत कथा कोष
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धरणेन्द्र पद्मावती सहित की मूर्ति को स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करे, घृत शक्कर से युक्त खीर चढ़ावे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्ष क्षणी को श्रर्घ चढ़ावे |
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं श्रीपार्श्वनाथ तीर्थंकराय धरणेन्द्रपद्मावति सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र को १०८ सुगन्धित पुष्प लेकर जाप करे, व्रत कथा पढ़े, णमोकार मन्त्र १०८ बार जपे, एक श्रीफल अर्ध सहित एक थाली में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल आरती उतारकर अर्ध चढ़ा देवे, शक्ति के अनुसार उपवास या कांजी का प्रहार अथवा एकभुक्ति अथवा एकाशन करके ब्रह्मचर्य पूर्वक धर्मध्यान से समय निकाले, दूसरे दिन चतुविध संघ को प्रहार दान देकर तीन सौभाग्यवती स्त्रियों को भोजन कराकर उनकी गोद में पान, गंधाक्षत, फल वगैरह से भर कर सत्कार करे, फिर अपने पारणा करे, इस प्रकार भाद्र, आश्विन, कार्तिक महिनों की शुक्ल तृतीया को पूर्वोक्त विधि से व्रत करे, कार्तिक शुक्ल ३ के दिन व्रत का उद्या - पन करे, उस समय पार्श्वनाथ तीर्थंकर का महाभिषेक करके क्षेत्रपाल का सिन्दूर आदि लगाकर सत्कार करके पूजन श्रर्घ्य समर्पण करे, नाना प्रकार का नैवेद्य बनाकर भगवान की अर्चना करे, पद्मावती को चढ़ावे, क्षेत्रपाल को चढ़ावे, सौभाग्यवती स्त्रियों को भी सब प्रकार का मिष्ठान्न देवे, अन्त में एक थाली में महाअर्घ्य लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ चढ़ा देवे, चतुर्विध संघ को दान देवे, दान देकर ही पारणा करे, ऐसा यहां नियम है ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांभोज नाम का नगर है, उस नगर में देव - पाल राजा अपनी लक्ष्मीमति सनी के साथ प्रानन्द से राज्य करता था । एक दिन उस नगरी के उद्यान में ज्ञानसागर नाम के मुनिराज प्राये, वनपाल के द्वारा मुनि आगमन का समाचार पाते ही पुरजन परिजन सहित राजा वंदनार्थ गया और भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हुआ, धर्म सभा में जाकर बैठ गया ।
कुछ समय धर्म श्रवण कर रानी हाथ जोड़कर विनती करती हुई कहने