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________________ ३७६ ] व्रत कथा कोष जीवोत्पत्ति हो गई, पूजा सामग्री में जीवाणु उत्पन्न हो गये, बहुत जीव हिसा हो जाने के कारण उसको बहुत पाप लगा। आगे वह पद्मावती रानी मरकर एक वैश्या के गर्भ से सर्वप्रिया नाम की गणिका होकर उत्पन्न हुई, वह वसंतमाला भी आयु के अंत में समाधि धारण कर मरी, और उसी नगर के अन्दर रहने वाले भानुदत्त सेठ की लक्ष्मीमती सेठानी के गर्भ से कुमारकांत नामक पुत्र होकर जन्मी । वह व्यक्ति भी उसी नगरो में रहने वाले नंदिवर्धन वैश्य और उसकी पत्नि नंदीवधिनी के गर्भ से कनकमाला नामको कन्या पैदा हुई । जब कुमारकांत युवा हुवा तब कनकमाला के साथ शुभ मुहूर्त में विवाह हो गया, और सुख से रहने लगे । एक दिन उस नगरी के उद्यान में विमलबोधन नाम के अवधिज्ञानी मुनिश्वर आये सामाचार प्राप्त होते ही नगरी का राजा प्रतापसिंह अपने परिजन पुरजन सहित मुनिदर्शन के लिये उद्यान में गया, मुनिराज को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके धर्मोपदेश सुनने के लिये बैठ गया, कुछ समय के बाद कुमारकांत हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे गुरुदेव ! मेरा मेरी पत्नी कनक माला के ऊपर इतना प्रेम क्यों है इसका कारण क्या है, सो कहो। तब मुनिराज कहने लगे कि हे कुमारकांत पूर्व भव में तुमने व्रतोद्यापन में नवीन वस्त्र देकर पुण्य संपादन किया था, उसी पुण्य से वह तुम्हारी पत्नी हुई है, इसी कारण से तुम्हारा प्रम उसके ऊपर ज्यादा है, वो राजा की पट्टरानी पद्मावती थो, वो मरकर वैश्या हुई है, यह सब भवान्तर मुनि के मुख से सुनकर सबको पूर्व भव का स्मरण हो गया और सब लोग सम्यग्दृष्टि हो गये। पुनः सब लोगों ने व्रत को ग्रहण किया, सब लोग वापस घर को प्रा गये, व्रत को अच्छी तरह से पालकर उद्यापन किया । उस वैश्या ने भी व्रत को पाला और संन्यासमरण से मरकर स्त्रीलिंग का छेदन करके सौधर्म स्वर्ग में अमरेन्द्र देव हमा, कुमारकांत और कनकमाला भी समाधिमरण से मरकर अच्युत स्वर्ग में इन्द्रप्रतीन्द्र होकर सुख भोगने लगे।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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