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________________ ३६८ ] व्रत कथा कोष इधर सुनन्दा सेठानी विचार करने लगी कि कौनसे उपाय से लक्ष्मीमती को कष्ट हो, इतने में एक सपेरा वहां से निकला, उससे सुनन्दा सेठानी कहने लगी कि हे सपेरे भाई तुम एक कार्य मेरा करो, लक्ष्मीमती को किसी भी तरह से पुत्र शोक हो तब सपेरा कहने लगा कि हे देवी मैं एक सांप घड़े में डालकर देता हूं तुम उस घड़े को लक्ष्मीमती के घर भेज दो और कहलवा दो कि इस घड़े में तुम्हारे पुत्र के लिये बहुत सुन्दर हार है तुम्हारा पुत्र इस घड़े में हाथ डालकर निकाले और गले में पहने तो तुमको सुन्दर गीत गाना आ जायेगा। तब सुनन्दा ने उस घड़े को एक मनुष्य के हाथ लक्ष्मीमती के घर भेज दिया, और सब बात कहला भेजी, तब लक्ष्मीमती ने उस घड़े में अपने पुत्र के हाथों से उस हार को निकलवा कर अपने गले में पहन लिया, लक्ष्मीमती उस हार से और भी सुन्दर दिखने लगी, रत्नहार का प्रकाश सारे घर में फैल गया, ये सब होने पर भी लक्ष्मीमती को गीत गाना नहीं आ रहा था। इधर सुनन्दा सेठानी को भी बहुत खुशी हो रही थी कि अब तो अवश्य ही लक्ष्मीमती को कष्ट होगा, देखें उसके घर में क्या हो रहा है, ऐसा विचार कर वह लक्ष्मीमती के घर देखने को गई । ___ जब सुनन्दा को लक्ष्मीमती ने देखा उस ही समय लक्ष्मीमती कहने लगी देवी सुनन्दे, तुम्हारे कहे अनुसार सब मैंने किया लेकिन तुम्हारे समान हमको गीत गाना नहीं पाया, क्या कारण है, सुनन्दा उसकी बात को सुनकर हैरान हो गई और अपने घर उल्टे पांव वापस लौट आई । मन में विचार करने लगी कि लक्ष्मीमती बहुत सौभाग्यशालिनी है उसको किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं हो सकता, मंने जो उसको दुःख पहुंचाने का कार्य किया सो बहुत ही अयोग्य किया, ऐसा रात-दिन विचार करने लगी। हे भव्यजीवो आप ! लोग किसी दूसरे को कष्ट पहुचाने रूप कार्य कभी मत करो । एक दिन लक्ष्मीमती मन्दिर में जिनदर्शन करने को गई, मन्दिर में राजा की रानी भी आई थी, लक्ष्मीमती के गले का सुन्दर हार देखकर रानी मदनमाला अपने राजमहल में पाकर राजा को कहने लगी कि हे देव ! प्राज मैं लक्ष्मीमती के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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