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व्रत कथा कोष
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करता था,
सेठानी ने इस व्रत को पाला था, परिणामतः उस सेठानी को थोड़ा भी दुःख नहीं था, उस सेठ को पांच पुत्र, एक कन्या थी, वह श्रेष्ठी बहुत धनवान था, ३२ करोड़ दीनार का स्वामी था, वो नित्य ही अपने धन को दान पूजा, यात्रा प्रतिष्ठा में खर्च इस प्रकार वह सेठ सुख से समय व्यतीत कर रहा था । उसी नगर में दूसरा एक और सेठ रहता था, जो अच्छी बुद्धि वाला था । राजा उसके ऊपर बहुत गौरव करता था, वो भी बहुत धनवान था, उसकी एक सुनन्दा नाम की सेठानी थी, उसका एक मुरारी नाम का लड़का था, अकेला होने से उसके माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे ।
जैसे २ वह बड़ा होने लगा, वैसे २ बहुत सुन्दर लगने लगा, उसको माता रात्रि में उसको दूध और चांवल खाने को देती थी । तुम रात्रि में बच्चे को खाना मत दो ऐसा उसका पति मना करता था, तो भी वो नित्य पुत्र को रात्रि में ही दूध भात खाने को देती थी । एक दिन उसने दूध और चांवल छींके पर रखा था, सो सर्प श्राकर विष छोड़कर चला गया, नित्य प्रमाण उसने अपने पुत्र को रात्रि में खाना दिया, उस दूध चांवल को खाते ही लड़का विष से प्रभावित होकर एक क्षण में ही मर गया, सुनन्दा सेठानी पुत्र के वियोग से बहुत दुःखित होने लगी और कहने लगी कि रात्री भोजन के कारण हो ऐसा हुआ है भव्य जीवो रात्रि में भोजन करने से ऐसे दुःख के परिणाम होते हैं, इसीलिये रात्रि में भोजन करने का शास्त्र में निषेध है ।
सुनन्दा बहुत जोर २ से रोने लगी, उसका रोना सुनकर लक्ष्मीमति सेठानी अपनी सखी से कहने लगी प्राज सुनन्दा सेठानी के घर में क्या उत्सव है सो जोर २ से गा रही है, चलो देखकर आवें । ऐसा वो क्यों कहने लगी ? उसमें एक कारण है । इस जन्म में उसने दुःख नाम की कोई चीज ही नहीं सुनी न देखी थी, उसका जीवन तो हर समय सुख से ही निकलता था. लक्ष्मीमति सुनन्दा सेठानी के घर जाकर कहने लगी कि हे सखी यह गीत तुमने कहां सीखा, जो तुम गा रही हो, ऐसा सुनते ही सुनन्दा को बहुत क्रोध आया और कहने लगी, कि तुम को भी ऐसा गीत चाहिए तो में तुम्हारे घर भेज देती हूं तुम प्रभो प्राने घर वापस शीघ्र चली जायो । तब लक्ष्मीमती कहने लगी कि हे सखी इस गायन को अवश्य मेरे घर भेज दो, कहकर लक्ष्मीमती अपने घर चली गई ।