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व्रत कथा कोष
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सागर महामुनिश्वर पधारे, राजा को समाचार प्राप्त होते ही वह परिजन पुरजन के साथ मुनिराज की वंदना को गया, मुनिराज की तोन प्रदक्षिणा करके नमस्कार किया और धर्मोपदेश सुनने के लिए निकट ही बैठ गया, कुछ समय उपदेश सुनकर रानी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, कि हे स्वामिन ! अनन्त सुखों का कारण ऐसा कोई व्रत मुझे प्रदान करिये, जिससे मेरा जन्म सार्थक हो । तब मुनिराज कहने लगे कि हे बेटी तुम नवनिधि भांडार व्रत का पालन करो, ऐसा कहकर व्रत का स्वरूप समझाया, सब लोगों को व्रत की विधि सुनकर बहुत अानन्द हुआ, रानी लक्ष्मीमति ने भक्ति से व्रत को ग्रहण किया और सब नगर में वापस लौट आये, आगे रानी ने निर्दोष व्रत का पालन किया, अंत में उद्यापन किया।
रानी के साथ में एक धनदत्त नाम के सेठ ने भी व्रत को यथाविधि पालन किया, उसके फल से उसको राजश्रेष्ठि पद प्राप्त हुआ। आगे जाकर सब लोक स्वर्ग मोक्ष को गये।
कौनसा धान्य भगवान को चढ़ाने से क्या फल मिलता है।
धान्य नाम
फल चांवल
पुत्र प्राप्ति तिल
कलंक रहित कोई भी दाल सूखी
उत्तम कुलोत्पन्न
ज्ञानी (धारणा शक्ति) चना
दरिद्रतारहित तुअर
हंसमुखता उड़द
मदरहित मूग
नवीन बस्त्राभूषण प्राप्ति इस प्रकार और भी नाना प्रकार के धान्य चढ़ाने से सुख की प्राप्ति होती है।
निर्दोषसप्तमी व्रत कथा भाद्रपद शुक्ल सप्तमी के दिन स्नान करके शुद्ध बस्त्र पहन करे, पूजा द्रव्य