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व्रत कथा कोष
उसने अपने सब पुत्रों की शादी कर दी । वो सब लोग आनन्द से अपना समय निकालने लगे, उन लोगों को जिन धर्म के ऊपर बहुत ही श्रद्धा उत्पन्न हुई, दीन अनाथ दुःखी लोगों को दान करने लगे, उसी प्रकार जिनपूजा, शास्त्र स्वाध्यायादि करने लगे, बहुत ही पुण्यसंचय करने लगे। अंत में जिनदीक्षा धारण कर तपस्या करने लगे, समाधिमरण कर स्वर्गसुख की प्राप्ति कर क्रमशः मोक्षसुख की प्राप्ति की।
इसलिए हे भव्यजनो! आप लोग भी इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करो, आपको भी अनन्त सुख की प्राप्ति होगी।
नवनिधि भांडार व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन श्रावक स्नान करके शुद्ध कपड़े पहनकर पंचामृताभिषेक का सामान व पूजाद्रव्य हाथों में लेकर जिनमन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर जिनेन्द्रप्रभु को नमस्कार करे, कोई भी एक प्रकार का धान्य चढ़ावे, नौ पुज उस धान्य का नौ देवता के नाम का करे । अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय, सर्वसाधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य जिनचैत्यालयेभ्यो नमः ऐसा बोलता हुअा पुज करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, इसी प्रकार नित्य पूर्णिमा पर्यन्त करे, नित्य ही अभिषेक करे, ब्रह्मचर्य पालन करे, अन्त में इस व्रत का उद्यापन करे, उस समय नवदेवता का महाभिषेक करके पूजा करे, एक सेर धान्य का उपरोक्त प्रमाण नौ पुज करे, नमस्कार करे, नौ प्रकार का नैवेद्य बनाकर जिनेन्द्र प्रभु को चढ़ावे, भगवान के सामने नी पान रखकर नौ पान के ऊपर एक-एक अर्घ्य रखे, नौ पुड़ी को रखे, नौ पुष्पमाला रखे और जिनेन्द्र भगवान को चढ़ा देवे, व्रत कथा पढ़े, अंत में नवदेवता के नाम से १०८ बार पुष्पों से जाप्य करे, एक महाअर्घ्य करके मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, इस प्रकार व्रत की पूर्ण विधि हुई।
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुगंधी नाम का एक बड़ा देश है, उस देश के रत्नसंचय नगर में एक महापराक्रमी, देवपाल नाम का राजा अपनी रानी लक्ष्मीमति के साथ राज ऐश्वर्य का भोग करता था। एक समय उस नगर के उद्यान में श्रुत