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________________ व्रत कथा कोष [ ३६३ कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांबोज नामक एक विशाल देश है, उस देश में उज्जयिनी नाम की एक नगरी है। उस नगर में प्राचीन काल में एक पराक्रमी, गुणवान, धर्मनिष्ठ, मदनपाल नाम का राजा था, उस की मदनावती रानी बहुत सुन्दर गुणवान व शोलवान थी, राजा इस प्रकार सुख से राज्य करता था। एक दिन नगरी के उद्यान में मुनिगुप्त नाम के एक दिव्य ज्ञानो पाये, वनपाल के द्वारा समाचार प्राप्त होने पर राजा मुनिराज के दर्शनों को सपरिवार रवाना हुआ, वहां जाकर मुनिराज को तीन प्रदक्षिणा दिया और उपदेश सुनने के लिए निकट में बैठ गये, धर्मोपदेश समाप्त होने के उपरान्त राजा की रानी मदनावती मुनिराज को कहने लगी हे संसारसिन्धु से पार उतारने वाले गुरुदेव ! मुझे एहिकलोक सुख की प्राप्ति होकर परमार्थ सुख की प्राप्ति होवे ऐसा कोई एक ब्रत दीजिये । रानी के ऐसे वचन सुनकर मुनिराज कहने लगे कि हे बेटी ! तुम को निरतिशय व्रत का पालन करना चाहिए, इस व्रत को जो कोई स्त्री पुरुष भक्ति, श्रद्धा से विधि पूर्वक पालन करता है उस भव्य को इस लोक के सुख की प्राप्ति होती है, और क्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति भो होती है, रानी ने व्रत का फल सुनकर श्रद्धा से व्रत को ग्रहण किया, वापस नगर में प्राकर व्रत को यथाविधि पालन करने लगी। उस समय उस नगरी में निर्विशुद्धि नामक एक वैश्य रहता था, उस वैश्य की शीलवती नाम की एक सुन्दर भावुक स्त्री थी, उस वैश्य के चौंतीस पुत्र थे। इतना सब होते हुए भी सेठ को दारिद्र ने घेर रखा था, उस दरिद्रता के कारण उन लोगों को पेट भर खाना भी नहीं मिलता था और शरीर पर वस्त्र भी पहनने को नहीं मिल पाता था, एक दिन वह स्त्री जिन मन्दिर में दर्शन को गई। भगवान के दर्शन को करने के बाद जब रानी को व्रताचरण करते हुए देखा तो उसके मन में भो व्रताचरण करने की भावना उत्पन्न हुई, रानी के साथ उसने भी व्रताचरण करना प्रारम्भ किया, अन्त में दोनों ने व्रत का उद्यापन किया, आगे व्रताचरण के फलस्वरूप शीलवती के घर में बहुत ही धन-संपदा की समृद्धि हो गई ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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