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________________ व्रत कथा कोष [ ३५६ प्रमाण पांच सौभाग्यवती स्त्रियों को वायना देवे, चतुर्विध संघ को आहार दानादि देवे, स्वयं पारणा करे । इस प्रकार इस व्रत को पांच वर्ष करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय पार्श्वनाथ और नेमिनाथ का महाभिषेक करके चतुविध संघ को चार प्रकार का दान देवे, मन्दिर में आवश्यक उपकरण देवे | कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी है, उसमें रत्नपुर नामका नगर है, वहां गरुडवेग राजा अपनी गरुडवेगा रानी के साथ में राज्य करता था । एक दिन नित्यनियम से प्रकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना करने राजा गया, वंदना करके वापस आते समय पूर्व भवका शत्रु रास्ते में मिल गया और उसने पूर्व भव के वैरानुसार राजा के साथ युद्ध करके हरा दिया और उसकी विद्या हरली । तब वह विद्यारहित होकर जमीन पर गिर पड़ा, उस जगह समाधिगुप्त नामक मुनिश्वर के दर्शन हुये, उसने अपनी सर्व को कह सुनायी, तब मुनिराज को उसके ऊपर दया आ गई पंचमी व्रत का स्वरूप कह सुनाया, और उसको व्रत दिया और कहा कि तुम इस व्रत को अच्छी तरह से पालन करो, जिससे धरणेन्द्रपद्मावति तुम्हारे ऊपर खुश होकर तुम्हारी विद्या तुमको वापस दे देंगे । दुखवार्ता मुनिराज और उसको नाग तब विद्याधर कहने लगा कि हे गुरुदेव इस व्रत को किसने पालन किया, और उसको क्या फल प्राप्त हुआ, सो कहो । तब मुनिराज कहने लगे कि हे राजन सुनो में एक कथा कहता हूं । कर्नाटक देश के चिंच गाँव में नागगौंडा नाम का एक गृहस्थ अपनी पत्नी कमला के साथ रहता था, उसके पांच पुत्र, अतिबल, महाबल, परबल, राम और सोम थे, उसकी एक सुन्दर चारित्रमति नाम की कन्या थी, उस कन्या का विवाह समीप के चंपगांव में धनगौड़ के पुत्र मनोहर के साथ कर दिया, उस चारित्रमति को शांत नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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