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________________ ३५८ ] व्रत कथा कोष सुमति ने इस व्रत को अच्छी तरह से पाला था। एक बार सेठ जिनदत्त पर कुछ लोगों ने उपसर्ग किया, बहूरानी के व्रत प्रभाव से शीघ्र उपसर्ग दूर हुअा, एक बार उसकी कन्या को सांप ने खा लिया, लेकिन वह भी निविष हो गई, मात्र उसके ऊपर गंधोदक छोड़ने मात्र से ही, एक बार उसके भाई पर भयंकर उपसर्ग किसी ने किया तब उसके व्रत के प्रभाव से यक्षदेव ने आकर उपसर्ग दूर किया । उसने अच्छी तरह से व्रत को पाला, अंत में समाधिमरण कर स्वर्ग गई, क्रमशः मोक्ष को जायेगी । ___ नागपंचमी और श्रियालषष्ठि व्रत कथा श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिरजी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा धरणेन्द्रपद्मावति सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, एक पाटे पर पान, सुपारी, लाया, भीगे हुये चने, गुड़ के पूड़े, भजिये, दूध, घी, शक्कर से बने नैवेद्य रखे ।। ____ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं पार्श्वनाथ तीर्थकराय धरणेन्द्रपद्मावति सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में नारियल सहित अर्घ्य लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल पारती उतारे, पांच सौभाग्यवती स्त्रियों को पान बीड़ा, गंधअक्षत, लाया, भीगे हुए चने, फल, हल्दी, कुकुयुक्त वायने देवे, उस दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, उपवास करे। पुनः षष्ठि के दिन मन्दिर में जाकर नेमिनाथ तीर्थंकर व यक्षयक्षिणी सहित प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे । श्रु त व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं नेमिनाथ तीर्थंकराय सर्वान्हयक्षकुष्मांदीनीयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । ___ इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक महामर्थ्य मंदिर की प्रदक्षिणा पूर्वक चढ़ावे, उपरोक्त
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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