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________________ व्रत कथा कोष स्वाहा । [ ३५७ अथ नित्यसौभाग्य ( सप्तज्योति कुंकु ) व्रत कथा विधि :- प्राषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन श्रावक स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहनकर अभिषेक पूजा का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, श्रीपीठ पर चौबीस तीर्थंकर प्रभु की मूर्ति यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, पूजा करे, शास्त्र व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, भगवान के आगे एक पाटे पर सात पान लगाकर ऊपर पृथक्-पृथक् प्रध्यं रखे, महादेवि पद्मावति की मूर्ति को हल्दी और कुंकु लगावे । ॐ ह्रीं वृषभादि चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, ॐ ह्रीं अर्हद्भ्यो नमः इस मन्त्र से १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाअर्घ्य रखकर हाथ में लेवे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, प्रदक्षिणा लगाते समय आत्मज्योति, आचार ज्योति, पुरुष ज्योति, पुण्य ज्योति, सहोदर ज्योति, छत्र ज्योतिश्चनित्यंमम् अस्माकं भवतु स्वाहा । पांच अथवा सात सौभाग्यवती स्त्रियों को हल्दी कुंकु लगावे । इस प्रकार से प्रतिदिन अभिषेकादि करके कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन चतुर्विंशति तीर्थंकरों का महाभिषेक पूजा करके व्रत का उद्यापन करे, एक चांदी का दीपक बनाकर उसमें सात सोने की बाती बनाकर रखे, एक थाली में नारियल सहित अर्घ्य रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल प्रारती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देबे, सौभाग्यवती सात स्त्रियों को भीगे चने, मिठाई, फलादि उनके आंचल में भरे याने प्रोटी भरे, सत्पात्रों को दान देवे, श्राषाढ़ शुक्ला अष्टमी से लगाकर कार्तिक पूर्णिमा तक उपवास अथवा एकाशन करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे । कथा प्रथम तो राजा श्रेणिक और बेलना की कथा पढ़े । उसी नगर में जिनदत्ते श्रेष्ठि और उसकी पत्नी जिनदत्ता रहती थी, उसका पुत्र वृषभदत्त और उसकी पत्नी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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