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________________ ३५६ ] व्रत कथा कोष की रह गई है, तब एक आर्यिका माताजी के पास दीक्षा ग्रहण कर अंत में समाधिमरण कर स्वर्ग को गई, फिर परंपरा से मोक्ष को गई । नित्योत्सव व्रत कथा चैत्रादि बारह महिनों में जिस दिन अमृतसिद्धियोग हो उस दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अभिषेक पूजा को सामग्री (द्रव्य) लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, मन्दिर में घी का दीपक जलावे, शांतिनाथ तीर्थंकर की यक्षयक्षिणी सहित प्रतिमा की स्थापना कर गणधरपादुका व ज्वालामालिनी की भी स्थापना कर पंचामृताभिषेक करे, जयमाला व स्तोत्र सहित भगवान की पूजा करे, अष्टद्रव्य से श्रुत की पूजा, गुरु की पूजा, यक्षयक्षिणी की पूजा करे, क्षेत्रपाल की भी पूजा करे । ॐ ह्रीं अहं श्रीशांतिनाथाय यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्रों का जाप्य करे, सहस्त्रनामस्तोत्र पढ़े, शांतिनाथ चरित्र पढ़े, व्रत कथा पढ़े । एक थाली में पांच पान रखकर ऊपर अर्घ्य रखे, नारियल रखे, उस थाली को हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य भगवान को चढ़ा देवे, उस दिन उपवास करे, अथवा कोई भी पांच वस्तु का त्याग कर एकाशन करे, सत्पात्रों को दान देवे, ब्रह्मचर्य पाले, इस प्रकार अमृतसिद्धियोग के दिन इस व्रत को करे, इस प्रकार पांच बार व्रत को करे, अंत में उद्यापन करे उस समय श्रीशांतिनाथ भगवान की नवीन मूर्ति यक्षयक्षिणी सहित मूर्ति की पंचकल्याण प्रतिष्ठा करे, अथवा शांतिनाथ विधान कर महाभिषेक करे, पांच महामुनिश्वरों को आहारादि दान देवे, आर्यिका माताजो को आहारदानादिक व वस्त्रदान देवे, पांच सौभाग्यवती स्त्रियों को भोजन वस्त्रदानादि देवे, दो गरीबों को अभयदान देवे, इस प्रकार व्रत विधि पूर्ण करे । कथा में राजा श्रेणिक व रानी चेलना का चरित्र पढ़े।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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