________________
पापों का क्षय हो जाता है और उसके लिए मोक्षमार्ग श्रासान हो जाता है तथा उसे नरक व पशुगति में जन्म नहीं लेना पड़ता और वह ४६ वें भव में निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति करता है । कहा भी है:
भाव सहित वंदे जो कोई । ताहि नरक पशुगति नहीं होई ॥
इस प्रकार इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने से अनेक भव्यात्माओं ने इस ग्रन्थ को पढ़कर सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की यात्रा कर धर्म लाभ प्राप्त किया है और कर रहे हैं रात्रि भोजन त्याग कथा -
परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्यरत्न निमित्तज्ञान शिरोमरिण विमलसागरजी महाराज विशाल संघ सहित राणाजी की नसियाँ खानियां जयपुर (राजस्थान) में वर्षायोग करने हेतु दिनांक ३-७-८७ को पधारे । ग्रन्थमाला समिति ने दिनांक ५-७-८७ को ही अपना नवम् पुष्प रात्रि भोजन त्याग कथा पुस्तक का प्रकाशन करवाकर इसका विमोचन श्राचार्य श्री के कर-कमलों से करवाया । कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के महामन्त्री श्री त्रिलोकचन्दजी कोठयारी ने की। मुख्य अतिथि श्री पूनमचन्द जी गंगवाल (फरियावाले) व श्री सोहनलालजी सेठी थे ।
केशलुञ्चन क्या और क्यों ?
परमपूज्य श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी महाराज के जयपुर (राजस्थान ) में वर्षायोग के समय प्राचार्य श्री की भारती, जिनवाणी स्तुति, वर्षायोग करने वाले साधुओं की सूची का प्लास्टिक कवरयुक्त कार्ड प्रकाशित करवाकर निःशुल्क वितरण किये गये । आचार्य श्री, उपाध्याय श्री, संघस्थ साधुत्रों के केशलुञ्चन समारोह के अवसर पर एक लघु पुस्तिका के लुञ्चन क्या और क्यों ? का प्रकाशन करवाकर निःशुल्क वितरण किया गया ।
जन्म जयन्ति पर्व क्यों ?
दिनांक १४-७-८७ को आचार्य श्री की ७२ वीं जन्म जयन्ति के शुभावसर पर जन्म जयन्ति पर्व क्यों ? एक लघु पुस्तिका का प्रकाशन करवाकर निःशुल्क वितरण किया । इससे जन-समुदाय को जन्म जयन्ति पर्व मनाने की जानकारी सुलभ हो गई । शीतलनाथ पूजा विधान ( हिन्दी ) -
--
वर्षायोग समाप्ति पर परमपूज्य श्री १०८ आचार्य रत्न विमलसागरजी महाराज विशाल संघ (४३) पिच्छी सहित दिनांक २७-११-८७ को ग्रन्थमाला के कार्यालय पर पधारे | इतने विशाल संघ का समिति के कार्यालय पर पधारना ग्रन्थमाला के इतिहास में स्वर्ण प्रवसर था । इस शुभावसर पर श्राचार्य श्री के कर-कमलों से श्री १००८