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आदरणीय पण्डित साहब श्री बाबूलालजी जमादार, श्री भरतकुमारजी काला, श्री काका हाथरसो आदि महानुभावों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री माणकचन्दजी पालीवाल ने की। इस प्रकार समिति के द्वारा पंचम पृष्प पुनर्मिलन' पुस्तक का विमोचन भी बहुत ही सुन्दर रहा । श्री शोतलनाथ पूजा विधान (संस्कृत)
___ग्रन्थमाला समिति ने षष्ठम पुष्प "श्री शीतलनाथ पूजा विधान" कन्नड से संस्कृत भाषा में अनुवादित करवाकर अलवर (राजस्थान) में आयोजित पंचकल्याणक में जन्म कल्याणक के शुभावसर पर श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर) के कर-कमलों द्वारा दिनांक ५-३-८४ को बड़ी धूमधाम से इसका विमोचन कराया। शांति विधान के समान ही यह शीतलनाथ विधान है। इस विधान की पुस्तक के प्रकाशन से उत्तर भारत के लोग भी अब इससे लाभ उठा सके, जो कन्नड भाषा नहीं जानते है । वर्षायोग स्मारिका
श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागर महाराज (अजमेर) ने वर्ष १९८४ का चातुर्मास जयपुर में किया । ग्रन्थमाला समिति ने इस शुभावसर पर एक बहुत ही सुन्दर वर्षायोग स्मारिका का प्रकापन करवाकर बुलियन बिल्डिग, जयपुर (राजस्थान) में विशाल जनसमुदाय के बोच दिनांक २८-१०-८४ को श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागर जी महाराज (अजमेर) के कर-कमलों द्वारा विमोचन करवाया । इस स्मारिका में वर्षायोग में प्रायोजित कार्यक्रमों के चित्रों की झलक प्रस्तुत को गई है और अलग-अलग विषयों पर ही ज्ञानोपयोगी साधुनों द्वारा लिखित लेख प्रकाशित किये गये हैं। समारोह की अध्यक्षता श्रीपान् ज्ञानचन्दजी जैन (जयपुर) ने की थी। श्री सम्मेद शिखर माहात्म्यम
परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य रत्न धर्मसागर जी महाराज ने विशाल संध सहित अपना १९८५ का वर्षायोग श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र लूणवां (राजस्थान) में किया । समिति ने इस अवसर पर अष्टम पुष्प के रूप में 'श्री सम्मेदशिखर माहात्म्यम' ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर प्राचार्य श्री के करकमलों द्वारा दिनांक १४-७ ८५ को विशाल जनसमुदाय के बीच विमोचन किया।
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्यम् ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । श्री सम्मेदशिखर जी के महत्त्व पर प्रकाश डालने वाला इस प्रकार के ग्रन्थ का प्रकाशन आज तक नहीं हुआ है। इस ग्रन्थ में २४ तीर्थ करों के चित्र, प्रत्येक कूट का चित्र अर्घ व उसका फल प्रकाशित किया गया है। संसार में सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र जैसा कोई क्षेत्र नहीं है। क्योंकि यह तीर्थराज अनादिकाल का है और इस सिद्धक्षेत्र से हमारे २४ तीर्थ करों में से २० तीर्थ कर मोक्ष पधारे और उनके साथ-साथ असंख्यात मुनिराज मोक्ष पधारे हैं । इसलिये इस क्षेत्र का कण-करण पूजनीय व वंदनीय है। इस क्षेत्र की वंदना करने से मनुष्य के जन्म जन्म के