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________________ ३४८ ] व्रत कथा कोष इस मन्त्र का १०८ बार पुष्पों से जाप करे, सामोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप करे। श्री जिनसहस्रनाम का पाठ करे । इस कथा को पढ़ना चाहिये, फिर एक पात्र पर : पान रखकर उस पर महार्घ्य बनाना चाहिये और इससे मंगल आरती करे । उस दिन उपवास करके सत्पात्र को दान दे । दूसरे दिन पूजा व दान करके अपना पारणा करना चाहिये । तीन दिन ब्रह्मचर्य रखे । इस प्रकार से महिने में एकबार या पक्ष में एकबार या पाठ दिन में एक बार करके नव शुक्रवार करे, पूर्ण होने पर उद्यापन करे । उस समय नवदेवता पूजा कर महाभिषेक करे । चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान दे। नव दम्पत्ति को भोजन कराकर यथायोग्य उनका सत्कार करे । कथा पहले मेरुपर्वत के पश्चिम में पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के किनारे मंगला. वति नामक एक देश है। उसमें वत्स नामक एक देश है। वहां पर नागदत्त नामक एक राजा राज्य करता था। उसको वसुमति नामक पट्टराणी थी। नन्दमित्र नंदिषेण वरसेन व जयसेन ऐसे पांच पुत्र व यदुकान्ता व श्रीकान्ता ऐसी दो लड़कियां थीं। इसके अलावा मन्त्री पुरोहित राजश्रेष्ठी सेनापति आदि थे। ___एक दिन पिहितास्रव भट्टारक नाम के एक प्रवधिज्ञानी महामुनि आहार करने के लिये राजमार्ग पर आये । राजा ने उन्हें पडगाहन किया और नवधाभक्ति पूर्वक आहार दिया । पाहार होने के बाद महाराज जी को एक पाटे पर बैठाया थोड़ा धर्मोपदेश सुनने के बाद राज ने दोनों हाथ जोड़कर कहा महाराज ! मुझे भी व्रत बताइये। महाराज पिहितास्रव ने कहा कि तुम नववासुदेव व्रत का पालन करो। यह सुन राजा को बहुत ही आनन्द हुआ । उन्होंने यह व्रत स्वीकार किया। इसके बाद दोनों ने व्रत का यथाविधि पालन किया। जिससे वे सुख से राज्य करते थे। थोड़े दिन के बाद उन्हें वैराग्य हो गया जिससे उन्होंने अपने बड़े पुत्र को राज्य दे दिया और जंगल में जाकर मुनि-दीक्षा ली जिससे अंत समय में समाधिपूर्वक मरण हुअा और स्वर्ग गये।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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