________________
व्रत कथा कोष
[ ३४६
उसी प्रकार वसुमति रानी ने भी एक आर्यिका के पास दीक्षा ली जिससे उनका भी समाधिपूर्वक मरण हुआ । बाद में उस व्रत का पालन करते हुये यथाक्रम से मोक्ष गये ।
नंद्यावर्त व्रत कथा
श्रश्विन महीने के अश्विन नक्षत्र के दिन शुद्ध होकर मंदिर जी में जावे, तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान को नमस्कार करे, नगर के उद्यान में जाकर, वहां नवदेवता व वासुपूज्य तीर्थंकर की मूर्ति पालकी में रखकर पूजाभिषेक का सब सामान साथ में लेकर जावे, वहां भगवान का पंचामृताभिषेक करे । एक पाटे पर बारह स्वस्तिक निकाल उनके ऊपर अक्षतादि रखकर प्रत्येक तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करे, पंच पकवान का २७ नैवेद्य चढ़ावे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे 1
ॐ ह्रीं
अनाहत पराक्रमाय सिद्धचक्रयंत्राधिपाय नमः स्वाहा |
ॐ ह्रीं श्रीं प्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ग्रहं वासुपूज्य तीर्थंकराय षण्मुखयक्ष गांधारीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इन प्रत्येक मन्त्रों से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, वासुपूज्य तीर्थंकर का चरित्र पढ़ े व्रत कथा पढ़, सहस्रनाम पढ़ े, एक सामूहिक जयमाला पूर्ण कर अर्ध्य चढ़ावे, आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, सत्पात्रों को दान देवे, उत्सवपूर्वक पुनः नगर में आवे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, सत्पात्रों को दूसरे दिन दान देकर स्वयं पारणा करे, उसी प्रकार प्रत्येक महीने में उसी नक्षत्र को इस व्रत का पालन करे, जैसे कार्तिक महिने में कृतिका, मार्गशीर्ष महिने में मृगशिरा, जैसा महिने का नाम बैसा ही नक्षत्र का नाम को व्रत करे, इस प्रकार बारह महिने तक बारह व्रत करके प्रत में उद्यापन करे, उस समय वासुपूज्य तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे, चतुविध संघ को दान देवे ।