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________________ व्रत कथा कोष T ३४७ इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे णमोकार मन्त्र का भी जाप करे । इस प्रकार से महिने की एक तिथि को करे, इस प्रकार नव तिथि पूर्ण होने पर उद्यापन करे । उस समय रत्नत्रय विधान करके महाभिषेक करे । १०८ फूल व फल बहाये । सत्पात्र को आहार दान दे । उन्हें शास्त्र या उपकरण भी दे । अभयदान, करुरणादान आदि दे । चित्रकूट पर्वत पर रहने रात्रिभोजन का त्याग पहले यह व्रत - मालव देश के उत्तर दिशा में वाली मांगीण जिसको पति ने मारा था इसलिये १ वर्ष तक किया था और जिनपूजा का अनुमोदन किया था । उस पुण्य से वह, सागरदत श्रेष्ठी की नागश्री नामक कन्या उत्पन्न हुई । अर्थात् धार्मिक व श्रीमंत्र के वहां उसका जन्म हुआ । फिर वह संसार सुख को भोगकर जिनपूजा दान व व्रत करने से स्वर्ग गयी । यह दृष्टान्त और यह व्रत विधान मुनिश्वर के मुख से सुनकर सबको बहुत आनन्द हुआ । तब इस बंकभूपाल ने यह व्रत लिया । फिर मुनिश्वर जंगल में चले गये । बाद में बंकभूपाल राजा ने यह व्रत विधिपूर्वक किया और उसका उद्यापन किया जिससे वह समाधिपूर्वक मरण कर स्वर्ग में देव हुआ। वहां वह चिर सुख भोगकर अनुक्रम से मोक्ष गये । अथ नववासुदेव व्रत कथा व्रत विधि :- किसी भी महिने के शुक्लपक्ष के गुरुवार से यह व्रत करे, उस दिन एकाशन करे और शुक्रवार के प्रातःकाल मन्दिर में जाये । वहां पर वेदी पर नवदेवता की स्थापना कर पंचामृत अभिषेक करे । उनके सामने नव स्वस्तिक निकालकर नव पान रखकर अष्टद्रव्य रखे और अष्टक पढ़कर पूजा करे | पंच पकवान से नैवेद्य बनाये, श्रुत व गुरु की अर्चना करे, यक्षयक्षी के साथ ब्रह्मदेव की अर्चना करे । जाप :- “ ॐ ह्रीं श्रीं श्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा । "
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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