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________________ ३४६ ] व्रत कथा कोष इस प्रकार महिने में दो बार यह व्रत करे । इस प्रकार आठ वर्ष पूर्ण होने पर फाल्गुन अष्टान्हिका में उद्यापन करावे । उस समय शिखरजी विधान करके महाभिषेक करे। यह सम्यग्दर्शन निःशंकितांग अंजन चोर द्वारा बड़ी श्रद्धा से करने पर उसको सद्गति मिली थी। अथ निःकाक्षितांग व्रत कथा । व्रत विधि :--पहले के समान सब विधि करे, अन्तर केवल इतना है कि कार्तिक शुक्ला १ के दिन एकाशन करे, २ को उपवास करे । मन्त्र :--ॐ ह्रीं अहं निःकांक्षित सम्यग्दर्शनांगाय नमः स्वाहा । यह सम्यग्दर्शन निःकाक्षितांग का व्रत अनंतमति ने किया था। अथ नागश्री व्रत कथा इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है उसमें कर्नाटक नामक देश है उसमें त्रयोदशपूर (तेरदल) नामक एक सुन्दर देश है वहां पर बंकभूपाल नामक महा पराक्रमी राजा राज्य करता था। उसकी पटरानी लक्ष्मीमति थी। राज्य में मंत्री, पुरोहित सेनापति आदि थे । सुख से राजा राज्य कर रहा था। एक दिन विद्यानंदी व माणिक्यनंदी ये दोनों मुनि चर्या निमित्त राजघराने को ओर आये । तब बंकभूपाल ने उनको पड़गाहन कर नवधाभक्ति पूर्वक आहार दिया। फिर मुनिश्वरों को बाहर उच्चै आसन पर बैठाया। धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने विनय से हमें कोई एक व्रत दे दीजिये ऐसा कहा । तब महाराज ने कहा तुम नागश्री व्रत करो। फिर व्रत को सब विधि कही। व्रत विधिः--१२ महिनों में कोई भी महिने के शुक्ल पक्ष में २ के दिन एकाशन करे और तृतीया के दिन उपवास करे। अन्य सब विधि पहले के समान करे। जापः-ॐ ह्रीं अहं परमल्लि मुनिसुव्रत तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षी सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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