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व्रत कथा कोष
विशेष तिथि का नियम नहीं है । केवल तिथि के अनुसार ही व्रत किया जाता है । इस प्रकार तिथि सावधिक व्रतों का कथन समाप्त हुआ।
____ विवेचनः–णमोकार मन्त्र की विशेष आराधना के लिए नमस्कार पैंतीसी व्रत किया जाता है । इस व्रत में ३५ उपवास करने का विधान है । सप्तमी तिथि के सात उपवास, पंचमी तिथि के पाँच उपवास, चतुर्दशी तिथि के चौदह उपवास एवं नवमी तिथि के नौ उपवास किये जाते हैं । इस व्रत में उपवास के दिन पञ्च परमेष्ठी का पूजन और अभिषेक करना होता है । तथा "नों हां णमोअरिहन्ताणं, प्रों हि णमो सिद्धाणं, ओ हणमो पाइरियाणं, प्रों ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ओं ह्रः णमोलोए सव्व साहूणं"
इस मन्त्र का जाप किया जाता है। उपवास के पहले और पिछले दिन एकाशन करना होता है।
णमोकारपैंतीसी व्रत अपराजित है मंत्र णमोकार, अक्षर तसु पैंतीस विचार । कर उपवास वरण परिमारण, सातें सात करो बुद्धिवान ।। पुनि चौदा चौदशि गण सांच, पांचे तिथि के प्रोषध पांच । नवमी नव करिये भवि सात, सब प्रोषध गरणात ॥ पैंतीसी गवकार जु येह, जाप्य मंत्र नवकार जयेह । मन वच तन नरनारी करे, सुरनर सुख लह शिवतिय वरे ।
-क्रियाकोष भावार्थ :-यह व्रत डेढ वर्ष अर्थात एक वर्ष और छह मास में समाप्त होता है, और इस डेढ़ वर्ष की अवधि के भीतर सिर्फ पैंतीस दिन ही व्रत के होते हैं । आषाढ़ शुक्ल सप्तमी से यह व्रत शुरू होता है, इसकी विधि निम्न प्रकार है
(१) प्रथम प्राषाढ़ शुक्ल सप्तमी का उपवास करे । फिर श्रावण को सप्तमी २, भादों की सप्तमी २, और आश्विन को सप्तमी २, इस प्रकार सात उपवास करे । पश्चात कार्तिक कृष्ण पंचमी से पौष कृष्ण पंचमी तक अर्थात पांच