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व्रत कथा कोष
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं अहं शीतलनाथ तीर्थंकराय ईश्वरयक्ष मानवीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पीले पुष्प लेकर जाप्य करे । १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप्य करे, व्रत कथा पढ़ एक महाअर्घ करके हाथ में लेते हुये मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतार कर अर्घ्य चढ़ा देवे, फिर उपवीत अपने गले में पहन लेवे, ब्रह्मचर्य पूर्वक उपवास करे, धर्मध्यान से समय बितावे । इसो क्रम से १० दिन पूजा करे, यह व्रत पांच वर्ष करे, उद्यापन करे, उस समय शीतलनाथ विधान करके महाअभिषेक करना, चतुर्विध संघ को दान देकर आवश्यक उपकरण भी देवे, दस सौभाग्यवती स्त्रियों को भोजन कराकर वायना देवे । फिर पारणा करे, इसी प्रकार इस व्रत की विधि है। कथा में श्रेणिक पुराण पढ़े, यह व्रत उन्होंने किया था ।
अथ देशविरतगुणस्थान व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे, अन्तर केवल इतना है कि प्राषाढ शु० २ के दिन एकाशन करे, ३ के दिन उपवास करे, पूजा वगैरह पहले के समान करे, ५ दम्पतियों को भोजन करावे, वस्त्र आदि दान करे।
कथा
पहले मनोहरपुर नगरी में मनोहर राजा अपनी महारानी मनोरमा के साथ रहता था । उसका पुत्र मनोज्ञात, उसकी स्त्री मनोधरा, विजय मन्त्रि, उसकी स्त्री शांता. मनकीति पुरोहित, उसकी स्त्री मनोभिलाषा, मनासागर, उसकी स्त्री मनोगामिनी, मनकमार सेनापति, उसकी स्त्री मनोवेगा पूरा परिवार सुख से रहता था । एक दिन उन्होंने मनोविजय गुरु से यह व्रत लिया और इसका यथाविधि पालन किया । सर्वसूख को प्राप्त किया, अनुक्रम से मोक्ष गये।
अथ दीपावली व्रत अथवा लक्षावली व्रत कथा कार्तिक कृष्णा १३ (तेरस) के दिन व्रतिक शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर जा अभिषेक की सामग्री लेकर जिन मन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा