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व्रत कथा कोष
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'ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्रहं अजितनाथाय महायक्ष रोहिरणीयक्षी सहिताय नमः
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे णमोकार मंत्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक जयमाला पूर्ण कर अर्घ चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, दूसरे दिन पूजादान करके स्वयं पारणा करे, इस प्रकार प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को व्रतपूर्वक पूजा करे, चार महीने पूर्ण होने पर अन्त में कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे, उस समय अजितनाथ तीर्थंकर विधान करे, महाभिषेक करे, नव प्रकार धान्यों से नौ पुञ्ज भगवान के श्रागे रखे, चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवे ।
कथा
राजा श्रेणिक और रानी चेलना की कथा पढ़ े ।
द्विपंच व्रत (ईरैदुगोलन व्रत )
श्रावण मास में पड़ने वाले उतरा नक्षत्र को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा द्रव्य की सर्व सामग्री लेकर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि क्रिया करते हुए भगवान को नमस्कार करे, श्री अभिषेक पात्र में श्री शीतलनाथ की ईश्वरयक्ष, मानवीयक्षि प्रतिमा स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, भगवान के प्रागे दश प्रकार का धान्य बिछा कर उसके ऊपर एक नवीन कपड़ा बिछावे, उसके चारों ही दिशाओं में जीरा, नमक, गेहूं, चांवल के पुञ्ज रखे, फूले हुए ( भीगे हुए) चने का भी पांच पुञ्ज रखे, उसके मध्य भाग में एक सजाया हुआ कुंभ रखे, कुंभ पर एक थाली, थाली में यक्षयक्षि सहित शीतलनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा रखे, दश डोरे का उपवीत ( होंग नूल ) करके, उसको हल्दी लगाकर भगवान के आगे रखे, प्रष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करे, जिनवाणी व गुरु की पूजा करके, ज्वालामालिनी, पद्मावती, रोहणी, इन की पूजा करे । मन्दिर में स्थित यक्षयक्षि, क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे, दश प्रकार की मिठाई से पूजा करे |