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________________ ३०८ ] व्रत कथा कोष प्रकार व्रत में एक बार चार दिन का उपवास पड़ेगा । एक पारणा बीच की लुप्त हो जायगी। चार दिनों के व्रत के उपरान्त तृतीया और चतुर्थी को एकाशन करना होगा । पंचमी और षष्ठी के उपवास के अनन्तर, सप्तमी को पारणा, पश्चात् अष्टमी और नवमी को उपवास करने पर दशमी, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी को एकाशन करना चाहिए । प्रत्येक महिने का अन्तिम उपवास शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी और पूर्णिमा का करना होगा। कुछ लोग इस व्रत को शुक्ल पक्ष से प्रारम्भ करने के पक्ष में हैं। शुक्लपक्ष से प्रारम्भ करने पर प्रथम बार चार दिन तक लगातार उपवास नहीं पड़ता है, क्योंकि चतुर्दशी और पूर्णिमा के उपवास के पश्चात् कृष्णपक्ष में चतुर्थी-पञ्चमी को उपवास करने का विधान है । परन्तु इस क्रम में भी दूसरी आवृत्ति में चार उपवास करना पड़ेगा। द्वितीय मान्यता में द्विकावली व्रत के लिए तिथियां निर्धारित की गयी हैं । अतः इसमें भी छः घटी प्रमाण तिथि के होने पर ही व्रत करना होगा । इस व्रत को जाप-विधि सर्वत्र एक-सी ही है । कषाय और विकथानों के त्याग पर विशेष ध्यान रखना चाहिये । द्विकावली व्रत का फल स्वर्ग मोक्ष की प्राप्ति होना है । जो श्रावक इस व्रत का अनुष्ठान ध्यानपूर्वक करता है तथा प्रमाद का त्याग कर देता हैं, वह शीघ्र ही अपना आत्म-कल्याण कर लेता है । यों तो सभी व्रतों द्वारा आत्म-कल्याण करने में व्यक्ति समर्थ है, पर इस व्रत के पालन करने से समस्त मनोवाञ्छाएं पूरी हो जाती हैं। किसी संकट या विपत्ति को दूर करने के लिये भी यह व्रत किया जाता है । कुछ लोग इसे संकटहरण व्रत भी कहते हैं। दर्शनावरणीय कर्म निवारण व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, अजितनाथ तीर्थंकर व यक्षयक्षि की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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