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व्रत कथा कोष
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श्रथ जयसेन चक्रवर्ती व्रत कथा
व्रतविधि:- पहले के समान ही सब करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ला १०मी के दिन एकाशन करे और ११ के दिन उपवास करे । पाटे पर ११ पत्ते रखे । ११ तिथि पूर्ण होने पर उद्यापन करे । ११ मनुष्यों को भोजन करावे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप में श्रीपुर नामक नगर है, वहां पर सुन्दर नामक राजा राज्य करता था, उसकी पट्टरानी पद्मावती थी । उसका विनयधर नामक पुत्र था । मन्त्री श्रादि सब थे । एक दिन उसके उद्यान में धर्मकेवली मुनिश्वर प्राये । जब राजा ने अपने माली से यह समाचार सुने तो वह अपने परिवार सहित उनकी वंदना करने गया । वहां जाकर धर्मोपदेश सुनकर राजा ने यह व्रत स्वीकार किया । समयानुसार उसका पालन किया जिसके उसको पुण्यबंध हुआ और वह सुख भोगने लगा ।
एक दिन वह अपने महल के ऊपर बैठा था कि उसे मेघों का विच्छेद दिखाई दिया, यह देख उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ । तब उसने अपने पुत्र विनयधर को राज्य देकर आप जंगल में जाकर दीक्षा ली और उत्तम रीति से तपश्चर्या करने लगा । जिसके प्रभाव से वह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, वहां का सुख भोगकर वहां से चयकर वह प्रभंकर चक्रवर्ति हुआ और छः खण्ड का अधिपति बना ।
एक दिन आकाश में हुये उल्कापात को देखकर मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ जिससे अपने पुत्र को राज्य देकर वरदत्त मुनि के पास निर्ग्रन्थ दीक्षा ली । तीव्र तपश्चरण करके समाधिपूर्वक मृत्यु हुई जिससे वह अनुत्तर स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से वह मनुष्य जन्म लेकर मोक्ष सुख भोगेगा ।
तपोऽञ्जलि व्रत का लक्षण
किनाम तपोऽञ्जलिर्व्रतम् ? द्वादशनासेषु निशिजलपानं न कर्त्तव्यमुपवासाश्चतुर्विंशतयः कार्याः, अष्टम्यां चतुर्दश्यां नैव नियमः प्रष्टस्यामेव चतुर्दश्यामेवेति ॥ अर्थ :- तपोऽञ्जलि व्रत की वया विधि है ? कैसे किया जाता है ? प्राचार्य कहते हैं कि बारह महीनों तक अर्थात् एक वर्ष पर्यन्त रात को पानी नहीं पीना और