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व्रत कथा कोष
और बुधवार को शुद्ध कपड़े पहन कर अष्ट द्रव्य लेकर मन्दिर में जाये दर्शन आदि कर वेदि पर पंच परमेष्ठी की मूर्ति स्थापित करे । उस पर पंचामृत अभिषेक करे । एक पाटे के ऊपर ५ पान रख कर स्वस्तिक निकाले, अष्ट द्रव्य रखे । पंचपरमेष्ठी की पूजा करे। श्रत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षो की अर्चना करे ।
जाप :-ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मंत्र का १०८ बार पुष्पों से जाप करे, णमोकार मन्त्र का जाप करे, जीवन्धर चरित्र पढ़ । भारती करे । उस दिन उपवास करे । सत्पात्र को दान देकर पारणा करे, तीन दिन ब्रह्मचर्य पाले ।
___इस प्रकार ५ बुधवार करे और अन्त में उद्यापन करे । उस समय पंचपरमेष्ठी विधान करे । महाभिषेक करे। चतुर्विध संघ को दान दे। ५ दम्पतियों को भोजन करावे । उनका सम्मान करे, २५ चैत्यालयों के दर्शन करे।
यह व्रत पूर्ण रूप से जिसने पालन किया उसको उत्तम गति प्राप्त हुई। उसकी कथा कहते हैं।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हेमांग नामक एक विस्तीर्ण देश है। उसमें राजपुर नामक नगर है । वहां सत्यन्धर नामक एक बड़ा पराक्रमी सदाचारी गुणवान ऐसा एक राजा राज्य करता था, उसकी रानी का नाम विजयादेवी था, उसका मन्त्री काष्ठांगार और पुरोहित रुद्रदत्त ये सुख से रहते थे।
सत्यंधर राजा को जीवंधर नामक एक लड़का था । उसने अपने छःभव पहले यह व्रत किया था परन्तु व्रत पर उसका विश्वास नहीं था और एक मुनि महाराज को अपने नगर से निकालने के कारण इस भव में उसके जन्म के पहले ही पिता का वध हो गया और १६ वर्ष के बाद देश व राज्य मिला। फिर बहुत समय तक राज्यसुख भोगकर जिन दीक्षा ली, घोर तपस्या करके व कर्मों का क्षय कर मोक्ष गये।